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मुद्राराक्षस

पतली होती है, इससे द्वार ही पर यह अँगूठी गिर पड़ी, और मैं उस पर राक्षस मंत्री का नाम देखकर आपके पास उठा लाया।

चाणक्य---वाह-वाह! क्यों न हो। अच्छा जाओ, मैंने सब सुन लिया! तुम्हें इसका फल शीघ्र ही मिलेगा।

दूत---जो आज्ञा।

[ जाता है

चाणक्य---शारंगरव! शारंगरव!!

शिष्य---( आकर ) आज्ञा, गुरुजी।

चाणक्य---बेटा! कलम, दावात, कागज तो लाओ।

शिष्य---जो आज्ञा। ( बाहर जाकर ले आता है ) गुरुजी! ले आया।

चाणक्य---( लेकर आप ही आप ) क्या लिखूँ? इसी पत्र से राक्षस को जीतना है।

( प्रतिहारी आता है )

प्रतिहारी---जय हो, महाराज की जय हो!

चाणक्य---( हर्ष से आप ही आप ) वाह-वाह! कैसा सगुन हुआ कि कार्यारंभ ही में जय शब्द सुनाई पड़ा। ( प्रकाश ) कहो, शोणोत्तरा, क्यों आई हो?

प्रति०---महाराज! राजा चंद्रगुप्त ने प्रणाम कहा है और पूछा है कि मैं पर्वतेश्वर की क्रिया किया चाहता हूँ इससे