पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३९

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किया और हिन्दी-साहित्य के प्रवाह को मोड़कर जनता की नवीन विचार-धारा के साथ ला मिलाया।

अब तक वीरगाथा, प्रेमाख्यान, भक्ति तथा रीति पर ही कविताएँ लिखी जाती थीं। अन्तिम रीति काल में अलंकारादि काव्यांग का विवरण देने के लिए ही कविता लिखने की प्रथा खूब चल निकली थी और वह भी थोड़े दिन नहीं, प्रत्युत् दो शताब्दी से ऊपर तक चलती रही। इस कारण जनता इस प्रथा से ऊब गई थी। भारतेन्दु जी ने उक्त प्रथा के विरुद्ध, देश काल की मॉग के अनुसार, कविता को भी नए-नए विषयों की ओर झुकाया। देश प्रेम, मातृ-भाषा-भक्ति, समाज-सुधार आदि लोक-हितकर विषयों को लेकर कविता करने और नाटक, निबन्धादि लिखने का मार्ग उन्होंने दिखाया। उपदेशमय मनोरंजन तथा विनोदपूर्ण छोटी कविताएँ भी लिखी जाने लगीं। हास्यरस को नए फैशन के आलम्बन दिए गए और वीररस के लिए आलम्बनों का अन्वेषण पौराणिक तथा ऐतिहासिक ग्रंथो में किया जाने लगा। मुक्तक या प्रबंध-काव्य के सिवा जिस प्रकार पहले दान-लीला, मृगया आदि विषयों पर दस दस बीस-बीस पदों के छोटे छोटे काव्य लिखने की प्रथा थी, वह अपनाई गई।

इस नवीन परम्परा के उत्थान का एक कारण भारत में अँगरेजों का आगमन कहा जाता है, विदेशियों का आगमन नहीं, क्योंकि विदेशी तो भारत पर प्रायः अज्ञात काल से टपकते चले आ रहे हैं। अँगरेजों के आगमन के ठीक पहले मुसल्मानो का भारत में आगमन हुआ था; पर आज सात शताब्दी व्यतीत हो जाने पर भी वे मातृभूमि तथा मातृ-भाषा-प्रेम को मज़हबी जोश में