पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८०
भारतेंदु-नाटकावली

अनशन करके प्राण त्याग किए। कोई-कोई इतिहास-लेखक कहते हैं कि चाणक्य ने अपने हाथ से शस्त्र द्वारा नंद का वध किया और फिर क्रम से उसके पुत्रों को भी मारा, कितु इस विषय का कोई दृढ़ प्रमाण नहीं है। चाहे जिस प्रकार से हो चाणक्य ने नंदों का नाश किया, किंतु केवल पुत्र सहित राजा के मारने ही से वह चंद्रगुप्त को राजसिंहासन पर न बैठा सका, इससे अपने अंतरंग मित्र जीवसिद्धि को क्षपणक के वेष में राक्षस के पास छोड़कर आप राजा लोगो से सहायता लेने की इच्छा से विदेश निकला। अंत में अफगानिस्तान वा उसके उत्तर ओर के निवासी पर्वतक नामक लोभ-परतंत्र एक राजा से मिलकर और उसको जीतने के पीछे मगध राज्य को प्राधा भाग देने के नियम पर उसको पटने पर चढा लाया। पर्वतक के भाई का नाम वैरोधक * और पुत्र का मलयकेतु था। और भी पाँच म्लेच्छ राजाओं को पर्वतक अपनी सहायता को लाया था। इधर राक्षस मंत्री राजा के मरने से दुखी होकर उसके भाई सर्वार्थसिद्धि को सिंहासन पर बैठाकर राजकाज चलाने लगा। चाणक्य ने पर्वतक की सेना लेकर कुसुमपुर को चारों ओर से घेर लिया। पंद्रह दिन


धर्मिष्ठ था इससे सम्मत न हुआ। वररुचि के चले जाने पर शकटार ने अवसर पाकर चाणक्य द्वारा कृत्या से नद को मारा।

  • लिखी पुस्तकों मे यह नाम विरोधक, वैरोधक, वैरोचक, बैबोधक विरोध, वैराध इत्यादि कई चाल से लिखा है।