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भारतेंदु-नाटकावली

विरुद्ध प्रयाण किया था। सिद्धांत यह कि भारतवर्ष में उस समय महानंद सा प्रतापी और कोई राजा न था।

महानंद के दो मंत्री थे। मुख्य का नाम शकटार और दूसरे का राक्षस था। शकटार शूद्र और राक्षसा ब्राह्मण था। ये दोनो अत्यन्त बुद्धिमान् और महा प्रतिभासंपन्न थे। केवल भेद इतना था कि राक्षस धीर और गंभीर था, उसके विरुद्ध शकटार अत्यंत उद्धतस्वभाव था, यहाँ तक कि अपने प्राचीनपने के अभिमान से कभी-कभी यह राजा पर भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहता। महाचंद भी अत्यंत उग्रस्वभाव, असहनशील और क्रोधी था, जिसका परिणाम यह हुआ कि महानंद ने अंत को शकटार को क्रोधांध होकर बड़े निबिड़ बंदीखाने में कैद किया और सपरिवार उसके भोजन को केवल दो सेर सत्तू देता था।


  • सिकंदर के कान्यकुब्ज से आगे न बढ़ने से महानंद से उससे

मुकाबिला नहीं हुआ।

बृहत्कथा में राक्षस मंत्री का नाम कही नहीं है, केवल वररुचि ने एक सच्चे राक्षस से मैत्री की कथा यों लिखी है---एक बडा प्रचंड राक्षस पाटलिपुत्र में फिरा करता था। वह एक रात्रि वररुचि से मिला और पूछा कि "इस नगर में कौन स्त्री सुंदर है?" वररुचि ने उत्तर दिया---"जो जिसको रुचे वही सुंदर है।" इस पर प्रसन्न होकर राक्षस ने उससे मित्रता की और कहा कि हम सब बात में तुम्हारी सहायता करेंगे और फिर सदा राजकाज में ध्यान में प्रत्यक्ष होकर राक्षस वररुचि की सहायता करता।

  • बृहत्कथा में यह कहानी और ही चाल पर लिखी है। वररुचि,