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भारतेंदु-नाटकावली

जोगिन---( मुसक्याकर ) वाह रे संकोचवाली! भला मुझसे कौन संकोच है? मैं फिर रूठ जाऊँगी जो मेरा कहना न करेगी।

चंद्रा०---( आप ही आप ) हाय-हाय! इसकी कैसी मीठी बोलन है जो एक साथ जी को छीने लेती है। जरा से झूठे क्रोध से जो इसने भौंहे तनेनी की हैं वह कैसी भली मालूम पड़ती हैं। हाय! प्राननाथ कहीं तुम्हीं तो जोगिन नहीं बन पाए हो। ( प्रगट ) नहीं-नहीं, रूठो मत, मैं क्यों न गाऊँगी। जो भला बुरा आता है सुना दूँगी, पर फिर भी कहती हूँ आप मेरे गाने से प्रसन्न न होंगी। ऐ मैं हाथ जोड़ती हूँ मुझे न गवाओ। ( हाथ जोड़ती है )

ललिता---वाह, तुझे नए पाहुने की बात अवश्य माननी होगी। ले मैं तेरे हाथ जोड़ें हूँ, क्यौं न गावैगी। यह तो उससे बहाली बता जो न जानती हो।

चंद्रा---तो तू ही क्यों नहीं गाती। दूसरों पर हुकुम चलाने को तो बड़ी मुस्तैद होती है।

जोगिन---हाँ हाँ, सखी तू ही न पहिले गा। ले मैं सरंगी से सुर की आस देती जाती हूँ।

ललिता---यह देखो। जो बोले सो घी को जाय। मुझे क्या, मैं अभी गाती हूँ।

( राग बिहाग-गाती है )