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श्रीचंद्रावली

जोगिन---( मुसकाकर ) अच्छा प्यारी! सुनो। ( गाती है )

जोगिन रूप-सुधा की प्यासी।
बिनु पिय मिलें फिरत बन ही बन छाई मुखहि उदासी॥
भोग छोड़ि धन-धाम काम तजि भई प्रेम-बनबासी।
पिय-हित अलख अलख रट लागी पीतम-रूप उपासी॥
मनमोहन प्यारे तेरे लिये जोगिन बन बन-बन छान फिरी।
कोमल से तन पर खाक मली ले जोग स्वॉग सामान फिरी॥
तेरे दरसन कारन डगर-डगर करती तेरा गुन-गान फिरी।
अब तो सूरत दिखला प्यारे 'हरिचंद' बहुत हैरान फिरी॥

चंद्रा०---( आप ही आप ) हाय यह तो सभी बातें पते की कहती है। मेरा कलेजा तो एक साथ ऊपर को खिंचा आता है। हाय! 'अब तो सूरत दिखला प्यारे।'

जोगिन---तो अब तुमको भी गाना होगा। यहाँ तो फकीर हैं। हम तुम्हारे सामने गावें तुम हमारे सामने न गाओगी। ( आप ही आप ) भला इसी बहाने प्यारी की अमृत बानी तो सुनेंगे। ( प्रगट ) हाँ! देखो हमारी यह पहिली भिक्षा खाली न जाय, हम तो फकीर हैं हमसे कौन लाज है?

चंद्रा०---भला मैं गाना क्या जानूँ। और फिर मेरा जी भी आज अच्छा नहीं है, गला बैठा हुआ है। ( कुछ ठहरकर नीची अॉख करके ) और फिर मुझे संकोच लगता है।