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भारतेंदु-नाटकावली
बिना प्रानप्यारे भए दरस तुम्हारे हाय,
देखि लीजौ अॉखै ये खुली ही रहि जायँगी॥
परंतु प्यारे, अब इनको दूसरा कौन अच्छा लगेगा जिसे देखकर यह धीरज धरेंगी, क्योकि अमृत पीकर फिर छाछ कैसे पियेंगी।
बिछुरे पिय के जग सूनो भयो,
अब का करिए कहि पेखिए का।
सुख छोड़िके संगम को तुम्हरे,
इन तुच्छन को अब लेखिए का॥
'हरिचंद जू' हीरन को व्यवहार कै
कॉचन कों लै परेखिए का।
जिन आँखिन में तुव रूप बस्यो,
उन आँखिन सों अब देखिए का॥
इससे नेत्र! तुम तो अब बंद ही रहो। ( आँचल से नेत्र छिपाती है )
( बनदेवी *, संध्या और वर्षा आती हैं )
संध्या---अरी बनदेवी! यह कौन ऑखिनैं मूँदिकै अकेली या निरजन बन मैं बैठि रही है?
- हरा कपड़ा, पत्ते का किरीट, फूलों की माला।
गहिरा नारंजी कपड़ा।
रंग साँवला, लाल कपड़ा।