पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२६

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की कन्या मोहन बीबी से हुआ। यद्यपि इनसे दो संतानें हुई पर दोनो ही बहुत थोड़ी अवस्था में मर गई।

यद्यपि इनकी शिक्षा विशेष रूप से नहीं हुई थी परन्तु प्रतिभा पूर्ण होने से ये संस्कृत तथा हिन्दी के ऐसे कवि तथा विद्वान हुए, कि बड़े बड़े पंडित भी इनका सम्मान करते थे। इनका चरित्र अत्यंत निर्मल था यहाँ तक कि गबिन्स साहब इन्हें 'परकटा फरिश्ता' कहते थे। विद्याध्ययन तथा पुस्तक संचयन की इन्हें बड़ी रुचि थी। इनका बृहत सरस्वती भवन अलभ्य तथा अमूल्य ग्रंथों का भंडार था। कवियों का यह बहुत आदर करते थे। इनके सभासदो में पंडित ईश्वरदास जी ईश्वर कवि, गोस्वामी दीनदयालगिरि, पंडित लक्ष्मीशंकरदास जी व्यास आदि प्रसिद्ध थे। साधु महात्माओ से भी इनको बड़ा प्रेम था। राधिकादास, रामकिंकरदास जी, तुलाराम जी और भगवानदास जी उस समय के प्रसिद्ध महात्मा थे। इनसे वह भगवत् सम्बन्धी चर्चा किया करते थे। इन्हें बचपन से ही भांग का दुर्व्यसन लग गया था और इतनी गाढ़ी भाँग पीते थे, कि जिसमें सींक खड़ी हो जाती थी। अंत में इसी कारण इन्हें जलोदर रोग हो गया जिससे अनेक प्रकार की चिकित्सा होने पर भी कुछ फल न निकला और अंत में सम्वत् १९१७ की वैशाख सु० ७ को गोलोक सिधारे। पूज्यपाद भारतेन्दु जी के दोहो से इतना पता लगता है कि इन्होने चालीस ग्रंथ लिखे थे परन्तु उन सब के नाम या अस्तित्व का पता नहीं चलता। दोहा यो है---