पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३८
भारतेंदु-नाटकावली

मिश्र---भवा चलो अपना काम देखो। ( बैठ गया )

( स्नान किए तिलक लगाए दो गुजराती आते हैं )

प० गुज०---मिसिरजी, जय श्रीकृष्ण। कहो का समय है?

मिश्र---अच्छी समय है, मंगला की आधी समय है। बैठो।

प० गुज०---अच्छा मथुरादासजी बसी जाओ। ( बैठते हैं )

( धोती पहिने एक बहा ओढ़े छक्कूजी आते हैं और उसी वेष से माखनदास भी आए )

छक्कूजी---( माखनदास की ओर देखकर ) काहो! माखनदास एहर आवो।

माखन०---( आगे बढ़कर हाथ जोड़ कर ) जै श्रीकृष्ण साहब।

छक्कूजी---जै श्रीकृष्ण, बैठो। कहो अाजकल बाबू रामचंद का क्या हाल है?

माखन---हाल जौन है तौन आप जनतै हौ, दिन दूना रात चौगुना। अभईं कल्है हम ओ रस्ते रात के आवत रहे तो तबला ठनकत रहा। बस रात-दिन हा-हा ठी-ठी, बहुत भवा दुइ-चार कवित्त बनाय लिहिन बस होय चुका।

छक्कूजी---अरे कवित्त तो इनके बापौ बनावत रहे। कवित्त बनावै से का होथै और कवित्त बनावना कुछ अपने लोगन का काम थोरै हय, ई भॉटन का काम है।