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भारतेंदु-नाटकावली

फिर अभी से यह बज्र कहाँ से टूट पड़ा। अरे ऐसा सुंदर मुँह, बड़ी-बड़ी आँख, लंबी-लंबी भुजा, चौड़ी छाती, गुलाब सा रंग! हाय, मरने के तुझमें कौन लच्छन थे जो भगवान् ने तुझे मार डाला! हाय लाल! अरे, बड़े-बड़े जोतसी गुनी लोग तो कहते थे कि तुम्हारा बेटा बड़ा प्रतापी चक्रवर्ती राजा होगा, बहुत दिन जिएगा सो सब झूठ निकला! हाय! पोथी, पत्रा, पूजा, पाठ, दान, जप, होम कुछ भी काम न आया! हाय! तुम्हारे बाप का कठिन पुण्य भी तुम्हारा सहाय न हुआ और तुम चल बसे! हाय!

हरि०--–अरे! इन बातो से तो मुझे बड़ी शंका होती है! ( शव को भली भांति देखकर ) अरे! इस लड़के में तो सब लक्षण चक्रवर्ती के से दिखाई पड़ते हैं! हाय न-जाने किस बड़े कुल का दीपक आज इसने बुझाया है, और न जाने किस नगर को आज इसने अनाथ किया है। हाय! रोहिताश्व भी इतना बड़ा हुआ होगा। ( बड़े सोच से ) हाय! हाय! मेरे मुँह से क्या अमंगल निकल गया! नारायण! ( सोचता है )

शैव्या---भगवन् विश्वामित्र! आज! तुम्हारे सब मनोरथ पूरे हुए! हाय!