पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२०४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८७
सत्यहरिश्चंद्र

को बड़ा ही कष्ट है। तो अब चलें आगे। ( आगे बढकर ) अरे! अरे! हम तुमको मोल लेंगे, लेव यह पचास सै मोहर लेव।

हरि---( आनंद से आगे बढ़कर ) वाह कृपानिधान! बड़े अवसर पर आए। लाइए। ( उसको पहिचानकर ) आप मोल लोगे?

धर्म---हाँ, हम मोल लेगे। ( सोना देना चाहता है )

हरि---आप कौन हैं?

धर्म---

हम चौधरी डोम सरदार। अमल हमारा दोनों पार॥
सब मसान पर हमरा राज। कफन माँगने का है काज॥
फूलमती देवी* के दास। पूजै सती मसान निवास॥
धनतेरस औ रात दिवाली। बलि चढ़ाय के पूजैं काली॥
सो हम तुमको लेंगे मोल। देंगे मुहर गॉठ से खोल॥

( मत्त की भाँति चेष्टा करता है )

हरि०---( बड़े दुःख से ) अहह! बड़ा दारुण व्यसन उपस्थित हुआ है। ( विश्वामित्र से ) भगवन्! मैं पैर पड़ता हूँ, मैं जन्म भर आपका दास होकर रहूँगा, मुझे चांडाल होने से बचाइए।


  • प्राचीन काल में चांडालों की कुलदेवी चंडकात्यायनी थीं, परंतु

इस काल में फूलमती इन लोगों की कुलदेवी हैं।