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भारतेंदु-नाटकावली

हाँ, पर आप यह भी जानते है कि क्या वह यह सब धर्म स्वर्ग लेने को करता है?

नारद---वाह! भला जो ऐसे हैं उनके आगे स्वर्ग क्या वस्तु है? क्या बड़े लोग धर्म स्वर्ग पाने को करते हैं? जो अपने निर्मल चरित्र से संतुष्ट हैं उनके आगे स्वर्ग कौन वस्तु है? फिर भला जिनके शुद्ध हृदय और सहज व्यवहार हैं, वे क्या यश वा स्वर्ग की लालच से धर्म करते हैं? वे तो आपके स्वर्ग को सहज में दूसरे को दे सकते हैं और जिन लोगो को भगवान के चरणारविद में भक्ति है वे क्या किसी कामना से धर्माचरण करते हैं? यह भी तो एक क्षुद्रता है कि इस लोक में एक देकर परलोक में दो की आशा रखना।

इंद्र---( आप ही आप ) हमने माना की उसको स्वर्ग लेने की इच्छा न हो, तथापि अपने कर्मों से वह स्वर्ग का अधिकारी तो हो जायगा।

नारद---और जिनको अपने किए शुभ अनुष्ठानों से आप संतोष मिलता है उनके उस असीम आनंद के आगे आपके स्वर्ग का अमृतपान और अप्सरा तो महातुच्छ हैं। क्या अच्छे लोग कभी किसी शुभ कृत्य का बदला चाहते है?

इंद्र---तथापि एक बेर उनके सत्य की परीक्षा होती तो अच्छा होता।