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भारतेंदु-नाटकावली
नटी---और फिर उनके मित्र पंडित शीतलाप्रसादजी ने इस नाटक के नायक से उनकी समता भी की है इससे उनके बनाए नाटको में भी सत्यहरिश्चंद्र ही आज खेलने को जी चाहता है।
नटी---कैसी समता, मैं भी सुनूँ।
सूत्र०---
जो गुन नृप हरिचंद मैं, जग हित सुनियत कान।
सो सब कवि हरिचंद मैं, लखहु प्रतच्छ सुजान* ॥३॥
( नेपथ्य में )
अरे!
यहाँ सत्य-भय एक के, कॉपत सब सुरलोक।
यह दूजो हरिचंद को, करन इंद्र उर सोक॥
सूत्र०---( सुनकर और नेपथ्य की ओर देखकर ) यह देखो! हम लोगों को बात करते देर न हुई कि मोहना इंद्र बन कर आ पहुँचा, तो अब चलो हम लोग भी तैयार हों।
( दोनों जाते हैं )
इति प्रस्तावना
- "श्रूयंते ये हरिश्चन्द्रे जगदाह्वादिनो गुणाः।"
दृश्यंते ते हरिश्चन्द्रे चन्द्रवतप्रियदर्शने॥"