पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/१४९

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उपक्रम

मेरे मित्र बाबू बालेश्वरप्रसाद बी० ए० ने मुझसे कहा कि आप कोई ऐसा नाटक भी लिखे जो लड़कों के पढने-पढ़ाने के योग्य हों, क्योकि शृङ्गाररस के आपने जो नाटक लिखे हैं वे बड़े लोगों के पढ़ने के हैं, लड़को को उनसे कोई लाभ नहीं। उन्हीं के इच्छानुसार मैंने यह सत्यहरिश्चंद्र नामक रूपक लिखा है। इसमें सूर्यकुल-संभूत राजा हरिश्चंद्र की कथा है। राजा हरिश्चंद्र सूर्यवंश का अठ्ठाइसवााँ राजा रामचंद्रर से ३५ पीढ़ी पहले त्रिशंकु का पुत्र था। इसने शौभपुर नामक एक नगर बसाया था और बड़ा ही दानी था। इसकी कथा शास्त्रों में बहुत प्रसिद्ध है और संस्कृत में राजा महिपालदेव के समय में आर्य क्षेमीश्वर कवि ने चंडकौशिक नामक नाटक इन्हीं हरिश्चंद्र के चरित्र में बनाया है। अनुमान होता है कि इस नाटक को बने चार सौ बरस से ऊपर हुए क्योकि विश्ववनाथ कविराज ने अपने साहित्य-ग्रंथ में इसका नाम लिखा है। कौशिक विश्वामित्र का नाम है। हरिश्चंद्र और विश्वामित्र दोनों शब्द व्याकरण की रीति से स्वयंसिद्ध हैं। विश्वामित्र कान्यकुब्ज का क्षत्रिय राजा था। यह एक बेर संयोग से वशिष्ठ के आश्रम में गया और जब वशिष्ठ ने सैन-समेत उसकी जाफत अपनी शबला नाम की कामधेनु गऊ के