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धनंजय-विजय
अ०-(घबड़ाकर) अरे क्या भैया आ गए? (रथ से उतरकर दंडवत् करता है)
सब-(आनंद से एक ही साथ) कल्याण हो-जीते रहो।
धर्म-
तुम इकले जीत्यो कुरुन, नहि अब चौथे नाम॥
अ०-(सिर झुकाकर हाथ जोड़कर) यह केवल आपकी कृपा है।
विरा०—(नेपथ्य की ओर हाथ से दिखाकर) राजपुत्र! देखो।
तुव उज्जल कीरति मनहुँ फैलत नगर मँझार॥
और,
खींच्यो कृष्णाकेस जो सभा मॉहि कुरुराज।
भीम०-(सुनकर क्रोध से) राजन् ! अभी बदला नहीं चुका, क्योकि-
तासों ताजो सद्य रुधिर करि पान घनेरो॥
ताही कर सो कृष्णा को बेनी बँधवाई।
धर्म-बेटा, तुम्हारे आगे यह क्या बड़ी बात है।