यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
भारतेंदु-नाटकावली
बरहिं तिनहिं नाचहिं हँसहिं गावहिं नभ सुरबाल॥
इंद्र-(हर्ष से) मैं क्या-क्या देखूँ? मेरा जी तो बावला हो रहा है।
उत बीरन कों बरन को लरहि अप्सरावृंद॥
विद्या०-ठीक है (दूसरी ओर देखकर) देव ! इधर देखिए-
ज्वाला-माला लोल लहर धुज सी फहरावत॥
परम भयानक प्रगट प्रलय सम समय लखावत।
प्रति०-देव ! मुझे तो इस कड़ी आँँच से डर लगती है।
विद्या०-भद्र ! व्यर्थ क्यों डरता है, भला अर्जुन के आगे यह क्या है? देख-
तासों नभ में घोर घटा को मंडल छायो॥
उमड़ि उमड़ि करि गरज बीजुरी चमकि डरायो।
इंद्रर-बालक बड़ा ही प्रतापी है।
प्रति०-देव ! राधेय ने यह भुजंगास्त्र छोड़ा है, देखिए अपने मुखों से आग सा विष उगलते हुए, अपने सिर के मणियों से चमकते हुए इंद्रधनुष से पृथ्वी को व्याकुल करते हुए,