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भारतेंदु नाटकावली
अमा०-महाराज जो आज्ञा।[जाता है
अ०-(कुमार से) देखो, गऊ दूर न निकल जाने पावै, घोड़ों को कसके हॉको।
कु०-(रथ हॉकना नाट्य करता है)
अ०-(रथ का वेग देखकर)
दूर रहत तरु-वृंद छनक मैं आगे आवत॥
जदपि वायु-बल पाइ धूरि आगे गति पावत।
पै हय, निज-खुर-वेग पीछहीं मारि गिरावत॥
खुर-मरदित महि चूमहिं मनहु धाइ चलहिं जब बेगि गति।
(नेपथ्य की ओर देखकर) अरे अरे अहीरो! सोच मत करो, क्योंकि-
जब लौं जननी बाट देखिकै नहिं डकरैहै॥
जब लौं पय पीयन हित वे नहिं व्याकुल ह्वैहैं॥
(नेपथ्य में) बड़ी कृपा है।
कु०-महाराज ! अब ले लिया है कौरवों की सेना को, क्योकि-
मनु प्राचीन कपोत गल सांद्र सुरुचि सरसात॥