पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/११६

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को लेकर पहिले भी खेल होते थे पर वे इस प्रकार सुव्यवस्थित नहीं थे। इंशा ने एक शैर में लिखा है-

न होगा राज में हरबोंग के लेकिन।
कहीं हज़रत सलामत आप के इंसाफ का जोड़ा।

कहानी है कि एक ग्राम ही ऐसा था जहाँ मूर्ख ही बसे थे और जिनका राजा यही हरबोंग था। जिसकी लाठी उसकी भैस' आदि से उसके न्याय के उदाहरण दिए जाते हैं । अस्तु, भारतेंदु जी ने इन्हीं सब कहानी को लेकर यह विनोद-पूर्ण प्रहसन रच डाला और उसमें बहुत लोगों पर सच्चा तत्वपूर्ण आक्षेप भी किया है।

आरंभ में उद्धृत श्लोक तथा समर्पण के छ रोलाओ में कारुण्य के साथ साथ स्वार्थीधता को छोड़कर सच्चा गुण-ग्रहण करने तथा देश और देशवासियों की सेवा में निरत रहने का मार्मिक उपदेश दिया गया है। 'अंत धर्म जय' कितना सत्य है । पाप-पुण्य, परपीडन-परोपकार, देशद्रोह-देशसेवा सभी का फल अंत होते ही स्पष्ट हो जाता है। मृत्यु के बाद जिसका जिस प्रकार स्मरण किया जाता है उसी से उसके जीवित काल के कर्म प्रगट होते हैं । धन तथा शक्ति के बल जीवित रहते कोई सब कुछ कर ले और अपनी प्रशंसा भी कराले पर अंत सबसे प्रबल है उस पर किसी की नहीं चली और न चलेगी।

प्रथम अंक में गुरु जी दो चेलों के साथ आते हैं और भोजन के प्रबंध की बातचीत 'जो है सो'वाली साधु भाषा में होती