पृष्ठ:भारतीय समकालीन दर्शन में प्रोफेसर रानडे के योगदान का समीक्षात्मक अध्ययन.pdf/१६

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जाता है तथापि भारतीय दार्शनिकों एवं चिन्तकों ने इसे दर्शन का विषय माना हैं। उन्होंने . दृश्यते अनेन इति दर्शनम्‌ ' कहकर दर्शनशास्त्र की परिभाषा को प्रस्तुत किया। उपनिषदों में भी ज्ञान के साधन रूप में ' दर्शन शब्द का प्रयोग हुआ है ।” . यह .ज्ञान एक मात्र विवेचना का विषय न मानकर उसे अनुभूति से भी सम्बद्ध करता हैं एक ओर जहाँ दर्शन का विषय अध्यात्म की ओर उन्मुख होना है वहीं दूसरी ओर उसे तत्व-ज्ञान का साधन भी जाना जाता हैं। इसीलिए भारतीय दर्शन के अंतर्गत दर्शन शब्द का अर्थ कोई सम्प्रदाय विशेष या ग्रंथ विशेष नहीं माना गया । इसके अन्तगंत दर्शन . जीवन की एक विधा हैं; सत्य को पहचानने की एक अंतर्दष्टि हू ।

जीवन की सर्वोत्कृष्ट कला का नाम दर्शन हैं, जो जीवन एवं तत्संबंधी तथ्योंका चितन एवं अनुमूति हैं। समस्त भारतीय दार्शनिकोंने दर्शन के इसी अर्थ को ग्रहण किया है तथा इसी के परिप्रेक्ष्य में अपनी कला का प्रदर्शन किया हैं | यह कला उसे वस्तुवादिता की स्थूल भावभूमि से उठाकर आध्यात्मिक चिंतन के उस स्तर पर पहुँचा देती हैं, -जहाँ उसे अपने अस्तित्व और अपने जीवन की एक नयी विधा प्राप्त॑ होती है । भारतीय दर्शन के अन्तर्गत इसकी दो प्रवृत्तियां स्वीकृत हैं.। पहली वौद्धिक और दूसरी अनुभूतिपरक । खण्डनात्मक प्रवृत्ति सापेक्ष, ग्राह्म एवं सविकल्पक हैँ | इसे साधारण भाषा में वुद्धि।. मतति, युक्‍क्ति, तर्क आदि के नाम से अभिहित कर सकते हैं | इसका-कार्य यह संकेत प्रस्तुत करना हैं कि जगत्‌ के सम्पूर्ण पदार्थ सतु, असत्‌ और संदसत्‌ विलक्षण होने के कारण मिथ्या हैँ। समन्वयात्मक प्रवृत्ति निरपेक्ष, निरविकल्पक और प्रपंचशुन्य हैं। इसे हम विशुद्ध ज्ञान, प्रज्ञा या स्वानुभात कह सकते हैं। '

भारतीय समसामयिक दार्शनिकों तथा चितकोंनें दर्शन के माध्यम से जीवन के रहस्यों एवं इसकी चरम उपलब्धि अर्थात्‌ परमतत्व के साक्षात्कार को ताकिक विश्लेषण द्वारा समझाया तथा उस रहस्यानुभूति

2-बुह्दारण्यक, उपनिषद्‌ 2/4/5