पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/९४

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६८ प्राचीनलिपिमाला लिपिपत्र २३ वें की मूलं पंक्तियों का नागरी भचरांतर- भों नमो विष्णवे ॥ यस्मिन्विशन्ति भूतानि यत- स्मर्गस्थिती मते । स व पायावृधोकेशे निर्गुण- स्मगुणश्च यः ॥ गुणा- पूर्वपुरुषाणां कोयले सेन पण्डितैः । गुणकौतिरनश्यन्तौ स्वर्गवासकरो यतः ॥ अतः श्रीबाउको धौमा(मान्) स्वप्रतौहारवाजा(वंशजान्) । प्रश- ८-मागरौलिपि ई. स की १० वी शताब्दी से (लिपिपत्र २४-२७) जैसे वर्तमान काल में भारतवर्ष की आर्य लिपियों में नागरी का प्रचार सब से अधिक है और सारे देश में इसका आदर है वैसे ही ई. स. की १० वीं शताब्दी के प्रारंभ से लगा कर अब तक भारत के अधिकतर हिस्सों अर्थात् राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मध्यभारत, युक्तप्रदेश और मध्यप्रदेश में तो इसका अटल राज्य बना रहा है. बिहार और बंगाल में भी १० वीं शताब्दी तक तो यही लिपि रही जिसके पीछे इसीके कुछ कुछ परिवर्तित रूप अर्थात् बंगला लिपि का प्रचार रहा, जो इसकी पुत्री ही है. पंजाब और कश्मीर में इसकी बहिन शारदा का प्रचार १० वीं शतांन्दी के आसपास से होने लगा. दक्षिण के भिन्न भिन्न विभागों में जहां नलुगु-कनडी, ग्रंथ और तामिळ लिपियों का प्रचार रहा वहां भी उनके साथ साथ इसका भादर बना रहा. इसीसे उत्तरी और दक्षिणी कोंकण तथा कोल्हापुर के शिलारवंशी राजाओं के शिलालेन्वों और दानपत्रों', दचिण (मान्यखेट) के राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) के कई दानपत्रों , गुजरात के राष्ट्रकूटों के कुछ दानपत्रों , पश्चिमी चालुक्यों तथा सेउणदेश और देवगिरि के यादवों के शिलालेख और दानपत्रों एवं विजयनगर के तीनों राजवंशों के कई दानपत्रों में नागरी लिपि मिल पाती है. विजयनगर के राजाओं के दानपत्रों की नागरी लिपि ' नंदि नागरी' कहलाती है और अब तक दक्षिण में संस्कृत पुस्तकों के लिखने में उसका प्रचार है. । ये मूल पंक्तियां प्रतिहार बाउक के उपर्युक्त जोधपुर के लेख से उद्धृत की गई है पं. जि. ३, पृ. २७१-६:२६७-३०२ जि. १२, पृ २६९-५ : जि ५, पृ २७७-८ जि ६, पृ. ३३-५ रज-१३, पृ. १३४-६. ज.बंद ए. सी जि.१२. पृ २१६: ३३३ जि.१३ पृ.२-५, मादि .. ..जि ३, पृ. १०५-१० जि ४.६०-२: २८१-६ जि ६, पृ. २४२-६ पृ. ३६-४१. जि ८, पृ १८४.८ जि६,२६३७ जि १०. पृ.१६..एँ जि.पृ. १३१-३. १५७-६० जि १२. पृ. १४६-५१. २६४-७. जि १३, पृ १३४-६ ई.पं. प्लेट ५ अक्षरों की पंक्तिपी. '.: जि ६, पृ. २८७-६४ .एँ; जि १३, पृ ६६.८. जि. १४. १६६-२००. .. .जि ३, ४-६:३०५-६. १.५, जि. १४, पृ. १४१-४२. जि.१६ पृ.२१-४, मादि • ए.जि.२, पृ २१७-२१. २२५८. (जि. १२, पृ. १५६-७. जि. १७, पृ. १००-२२: मादि . .. जि. १, पृ ३४१-४. जि ३, पृ. २१६-२० एँ, जि १४, पृ ३१५-६ अ.बंब ए. सो; जि. १२. पू. ७-८, २५-३०:४२-५. जि. १५, पृ ३८६-६०. आदि . . , जि ३, पृ. ३७-६; १२०-२४, १५१-८२४०-५१. जि.४, पृ.१२.२९.२७२-८. जि. ७, पृ.८०-८३ जि... पृ. ३३१ ६. जि ११, पृ. ३२६-३६ जि १२, १७२-२५. जि. १३, पृ. १२६-३१ .एँ; जि.१३, पृ १२८-३२: १५६-६०: मादि.