37 खरोष्ठी लिपि की उत्पत्ति. में तक्षशिला नगर' से भी मिल चुका है. मिसर से हवामनियों के राजस्वकाल के उसी लिपि के बहुतेरे पंपायरस मिले हैं और एशिया माइनर मे मिले हुए ईरानी क्षत्रपों ( सत्रपों) के कई सिकों पर उसी लिपि के लेख मिलते हैं, जिनसे पाया जाता है कि हग्वामनी वंश के ईरानी बादशाहों की राज- कीय लिपि और भाषा अरमइक ही होनी चाहिये. व्यापार के लिये भी उमका उपयोग दर दर तक होना पाया जाता है. हिंदुस्तान का ईरान के माथ प्राचीन काल से संबंध रहा और हग्वामनी वंश के बादशाह सा- इरस (ई. स. पूर्व ५५८-५३० ) ने पूर्व में यढ़ कर गांधारंदश विजय किया और ई. स. पूर्व ३१६ के कुछ ही बाद दारा (प्रथम) ने मिंधु नक का हिंदस्तान का प्रदेश अपने अधीन किया जो ई. स. पूर्व ३३१ तक, जब कि यूनान के बादशाह मिकंदर ने गॉगर्मला · की लड़ाई में ईरान के बादशाह दारा (नीमरे ) को परास्त कर ईरानी राज्य पर नाम मात्र के लिये अपना अधिकार जमाया, किसी न किमी प्रकार बना रहा. अत एव मंभव है कि ईगनियों के राजत्वकाल में उनके अधीन के हिंदुस्तान के इलाकों में उनकी गजकीय लिपि अरमदक का प्रवेश हुआ हो और उमीम ग्वरोष्ठी लिपि का उद्भव हुभा हो, जैसे कि मुसलमानों के राज्य ममय फारमी लिपि का, जो उनकी राजकीय लिपि थी, हम देश में प्रवेश हुआ और उसमें कुछ वर्ण बढ़ाने में उद लिपि बनी. अरमडक निपि में केवल २ अक्षर होने तथा म्वरों की अपूर्णता और उनमें ट्रम्ब दीर्घ का भेद न होने एवं स्वरों की मात्राओं का मर्वथा अभाव होने में वह यहां की भाषा के निय मर्वथा उपयुक्त न थी ना भी राजकीय लिपि होने के कारण यहां वालों में मे किमी ने ई. म. पर्व की पांचवी शताब्दी के आमपास उमके अक्षरों की संख्या बढ़ा कर. किननं एक को आवश्यकता के अनुमार यदल नक्षा म्वगं की मात्राओं की योजना कर उमपर में मामूली पढ़े लिखे लांगी. व्यापारियों नया अहल्कारों के लिये काम चलाऊ ग्वगष्ठी लिपि बना दी हो मंभव है कि इसका निर्माता चीन वालों के लग्वानुसार ग्वगष्ट नामक प्राचार्य ( ब्रामण ) हो. जिमके नाम पर में इम लिपि का नाम ग्वरोष्ठी हुआ, और यह भी संभव है कि नन- शिला जैसे गांधार के किमी प्रानीन विद्यापीठ में इसका प्रादुर्भाव हुआ हो. जितने लेग्व अब तक इस लिपि के मिले हैं उनमे पाया जाता है कि इसमें म्बरों नथा उनकी मात्राओं में ह्रस्व दीर्च का भेद न था. मंयुकाक्षर केवल धांडे ही मिलने हैं इतना ही नहीं, किंतु उनमें मे कितने एक में मंयुक्त व्यंजनों के अलग अलग रुप स्पष्ट नहीं पाये जाने परंतु एक विलक्षण ही म्प मिलता है जिसमें कितने एक मंयुकानगं का पढ़ना अभी तक मंशययुक्त ही है. बौद्धों के प्राकृत पुस्तक ', जिनमें म्बरों के इस्व दीर्घ का विशेष भंद नहीं रहता था और जिनमें मंयु- 2 ज रॉग मो. ई स १५ पृ ३४० के मामन का प्लट मिसर मई म पूर्व ४५० स लगा करई म पर्व... नक के अग्मइक लिपि के पायग्स मिल है ई .: जि २४. पृ २८७ न गॅप सोई म १९१५. पृ ३४६-४७ ५ गॉगमला। अविला टकी के पशिबाई गज्य का एक नगर जो मांसल और बगदाद के बीच में है र खरोष्ठ के लिये देखा ऊपर, पृ. स्वर्गष्टी लिपि के शिलालेखादि के लिय देखो ऊपर पृ ३२ टि ७-६. और पृ. ३३ टि १.२ • हिडा के स्तूप ( मंख्या १३) से मिल हुए खगेष्ठी लेखयाले मिट्टी के पात्र के भीतर खगेष्ठी लिपि में लिखे हुए कितने एक भोजपत्र एक पत्थर पर लिपटे हुए मिले थे परंतु बहुत प्राचीन होने के कारण वे बच न सके (पॅरिआना ऍटिका, पृ ५६-६०,८४, १४, १११, १९६) ये सबसे पुराने हस्तलिखित भोजपत्र थे। म की तीसरी शतान्दी के पास पास की 'धम्मपद' की एक प्रति खोतान से मिली है जिसमें स्वरों की मात्रामों में कुछ सुधार किया हुआ पाया जाता है (ई. पेः पृ. १८-१६)
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