२-ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति. मौर्यवंशी राजा अशोक के लेम्वां तथा ई.स. पूर्व की चौथी शताब्दी में लगाकर ई.म. की नीमरी शताब्दी के आसपास तक के किनने एक मिकों आदि में पाया जाता है कि उम ममय इस देश में दो लिपियां प्रचलित थीं; एक नो नागरी की नाई बाई तरफ से दाहिनी ओर लिम्ची जाने वाली मार्व- देशिक, और दूसरी फ़ारसी की तरह दाहिनी ओर में बाई ओर लिग्बी जाने वाली एकदशिक. इन लिपियों के प्राचीन नाम क्या थे इस विषय में ब्राह्मणों के पुम्नकों में तो कुछ भी लिग्वा नहीं मिलता. जैनों के पन्नवणामत्र' और 'ममवायांगमत्र' में १८ लिपियां' के नाम मिलते हैं, जिनमें मब में पहिला नाम बंभी' (ग्रामी) है, और भगवतीमूत्र में 'भी' (ब्रामी) लिपि को नमस्कार करके ( नमो यंभी लिविए) मत्र का प्रारंभ किया गया है. बौद्धों के मंस्कृत पुस्तक 'ललितविस्तर में ६४ लिपियों के नाम मिलनं हैं जिनमें मय मे पहिला 'ब्राह्मी और दमरा 'म्बरीष्ठी' है. चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार होने के पश्चात ई.स. की पहिली में पाठवीं शताब्दी तक हिंदुस्तान से किननं ही बौद्ध श्रमण अपने धर्म के प्रचार के निमित्त समय ममय पर चीन में गये और उन्होंने यौद्धों के अनेक मंस्कृत और प्राकृत ग्रंथों के चीनी भाषा में अनुवाद कियं या उस काम में महायता दी. चीन में १ वंभी. जवणालि । या जवालिया ) दामापुग्यिा । या दामापुरिसा। स्वगट्टी । या खगठी), पुक्खरमारिया भोगवस्या पहागड्या ( या पहगड्या) उपरिक्श्वया (या उयनरकग्यिा प्रवर्गपट्टिया। या अकायापुंठिया ।, नव गइया । या बगइया ।, गि[णि' ]डया (या गिगहनिया) अंकर्लािय या अंकलिकग्या' गणिलिवि । या गणियलिवि। गव्यालिचि आदमलिवि। या पायालांव। माहमग या मांहस्पगे। द्वामिली श्रार पोलिडी य नाम पन्नवणामृत्र की दो प्राचीन हम्नलिम्वित पुस्तकों में उद्धत किय गय है. ‘लालयिता' में युद्ध का रिती यह प्रथ कब बना यह निश्चित नहीं परंतु इसका चीनी अनुवाद म ३०८ मे दृश्रा था । ब्रामी. वगंष्ठी पुष्करमार्ग अंगालांप. बंगलिपि मगर्धालपि. मांगल्यलिपि मनुलिपि अंगुलीयलिपि, शकारि- लिपि ब्रह्मवालिपि. द्राविलिपि, कनागिलिपि दक्षिलपि उग्रलिपि, संण्यालिपि अनुलोमलिपि. ऊर्ध्वधनुर्लिपि, दर- दािप, स्वास्यालाप, चीनलिपि हालाप मध्यातर्गवस्तलिपि पुप्पालाप. देवालाप नागलिाप यालपि, गन्धर्वलिपि, किन्नलिपि. महाग्गलिपि, असुरलिपि गलिपि. मृगचक्रािप चालीप, वायुमलिपि भामदलिपि, अंतरिक्षदलिपि, उत्तरकुढीपलिपि, अपग्गीडादिलिपि. पूविंदहलिपि उन्क्षपर्लािप निनलिपि निक्षपलिपि प्रक्षेपालाप. मागर्गाप, यलिपि. लवप्रतिलेखलिपि. अनुदलिपि. शाग्नावलिपि गगणावर्तलिपि, उन्क्षेपावलीप चितपावलिाप, पादलिग्विन- लिपि. द्विस्तरपटन्धिलिम्वितनिगि दशोत्तरपदसन्धिािरवालाप अध्याहारिणालिपि. मवंगसंग्रहणीलिप विद्यानुलोम- लिपि, विमिश्रिालपि, ऋषितपम्नलिपि, धरणीप्रेक्षणालिपि. मापनियन्दलिपि, सर्वमारसंग्रहणीलिपि और मर्वभूतरुद- ग्रहणीलिपि (ललितविस्तर. अध्याय इनमें से अधिकतर नाम कल्पित है , म १७ में काश्यप मातंग चीन के बादशाह मिग-टी के निमंत्रण मे वहा गया, श्रार उसके पीछे मध्यभारत का श्रमण गाभरण भी वहां पहुंचा इन दोनों ने मिलकर एक मत्रग्रंथ का अनुवाद किया और काश्यप के मग्न के बाद गाभ गरण ने ई.स १८ र ७० के बीच ४ सूत्रों के अनुवाद किये मध्यभारत के श्रमण धर्मकाल ने चीन में रह कर ई.स २५० में 'पातिमांकाव' का, धर्माप्रय ने .स ३८२ में दशमाहात्रका प्रमापारमिता' का. कुमारजीव नईम ४०२ और ५१२ के बीच 'सुग्वावतीव्यूह । छांटा), 'वज्रच्छतिका' आदि कई ग्रंथो का. श्रमण पुग्यता और कुमारजीव ने मिलकर ईम.४०४ में 'मर्वास्तिवादविनय का मध्यभाग्न के श्रमण धर्मजातयशस न ई म. ४८१ में 'अमृतार्थमूत्र' का. बुद्धशांन ने ई. ल. ५२४ र ५३६ के बीच प्रथा का और प्रभाकरमित्र ने ई.म १२७ और ६३३ के बीच 3 ग्रंथा का चीनी भाषा में अनुवाद किया. मध्यभारत का श्रमण पुण्योपाय ( नाथी या नदी ई स ६४५ मे योद्धा के दानी संप्रदायों । महायान और हीनयान ) के त्रिपिटक से संबंध रखने वाले १५०० से अधिक पुस्तक, जो उसने हिन्दुस्तान और मीलोम ( सिंहलद्वीप, लंका) में संग्रह किये थे, लेकर चीन में गया दक्षिण का श्रमगा वज्रबोधि और उसका शिप्य अमाधवन ई स ७९६ में चीन में गये. धनषोधी ने ई.म ७२३ और ७३० के बीच ४ ग्रंथों का अनुवाद किया और वह ई स ७३२ में ७० वर्ष की अवस्था में मग, जिसके बाद अमाघषजनस ७४१ मे हिन्दुस्तान और सीलोन की यात्रा की ईम.७४६ में वह फिर चीन में पहुंचा और उक्त मन से लगा कर उमकी मृत्यु तक, जो ई म ७७४ में हुई उसने ७७ ग्रंथों के चीनी अनुवाद किय
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