भारतवर्ष में लिखने के प्रचार की प्राचीनता y 'जातक के पुस्तकों में खानी तथा गजकीय' पत्री, करजा लेने वालों की तहरीरों तथा पोत्यक (पुम्नक) का', और कुटुंब मंबंधी आवश्यकीय विषयों', राजकीय आदेशी तथा धर्म के नियमों के सुवर्णपत्रों पर खुदवाये जाने का वर्णन मिलता है. बुद्ध के पूर्वजन्मी की कथाश्री को जातक कहते है योद्ध मारिन्य में प्रेमी प्रायः ४५० कथा का २२ निपातो (अध्यारों में बड़ा मंग्रह है प्रत्यक कथा के प्रारंभ में लिखा कि जनधन में अनाडिक के बाग में या अन्यत्र जब बुद्ध विहार करत थे तब श्रमक प्रसंग उटन पर उन्मान यह कथा कही. कथा के पूर्ण होने पर बुद्ध ने बताया है कि इस समय के तिमान मनुष्यों में इस कथा के समय पूर्व जन्म में कौन कौन किम किम शगर म और अंत में अपना भी पता दिया है किटम कथा का अमुक पात्र म था नरहुन के स्तूप के कटहग पर की जानकाय चित्र युट टुग है ार उनपर नाम भी दिन, एक पर ( जातक मेंस गाथा का पक पाट या कान्या म्युदा हुअा है यह सपईस पूर्व की नाम शताब्दी का है अनपय जानको का दमन प्राचीन होना ता सिद्ध है परंतु जिन गजाश्री पार नगग का उनम उल्लेख व नंद और मार्यवंशी गजात्राक परलक और पात्रों के प्राचार व्यवहार भी बुद्ध के बहुत पहले के जान पड़त है इसम यह मानना माहम नहीं है कि म प्रय की छठी शनाष्टी या उम्प भा पहले के समाज के चित्र जानकों की कथा में अंकित है प्रॉफमर कॉवल की संपादकता में ५४७ जानका का अंग्रेजी भाषांतर जिल्ला में छप कर प्रकाशित हुआ है मल डॉक्टर फॉमॉल ने गमन लिपि में प्रकाशित किया। बागा क एक मंट के गुलाम कटाहक न जाला चिटु । पगण - पर्ण पन्ना = पत्र । म अपने श्रापको मठ का पुत्र सिद्ध करक पय दृसमट की पुत्री से विचार कर लिया उस पत्र पर उसने मंट ही की मोहर (महिका-मुद्रिका भी कर ली थी प्रमिला नशिला के विश्वविद्यालय क एक अध्यापक ने अपने पनि छात्रों को पणण (= पत्र) लिम्बा (महामुतमाम कटादक जातक जानका पशगजा गय छोड़कर बनवारी होगया था पक ग्राम में जाकर रहा वहां वालो ने उसका आतिथ्य अच्छा किया जिम १६ उमने अपने भाई को जो गजा था, एक परणग्ण भेजा कि इनका गजकर क्षमा कर दिया जावे (कामजातक) काशक गजा ने अपने निकाल दुग पुगेन्ति को फिर बुलाने के लिये पक गाथा लिख कर पणण भजा और उमपर गजमुहिका (गज टिका) मगर का : युगाणनदी जानक पोतलि के गजा अस्मक अश्मक। के मंत्री नंदिमन ने एक मामन शामन लिख कर दंतपुर के गजा कालिंग का अाक्रमण रोका और कालिग गजा लग्व को सुन कर (लेखं सुत्वा रुक गया (चुल्लकालिंग जानक मान गजात्रा ने काशी का चंग देकर गजा व्रह्मदत्त को पगाण भेजा कि गज्य छोड़ा या लड़ा उसकं उत्तर में राजा के भाई अदिस अयश ने वारण पर अक्षर अक्रवर्गान) खांदे । अचिन्दि। और वह याण पेमे निशान म माग कि उनके मोजनपात्रों पर लगा उमम लिखा था कि भाग जाग्री नहीं तो मार जानोगे अमदिम जातक । नामी चार जैन आज कल पुलिस के जिम्मर में 'नंबग बदमाश होने है. लिखितको चोरी, अर्थात् जिसके बारे मे गज की और मालम्बी हई अामा निकल चकी हो. कहलाता था एमे चोर बौद्धसंघ में ा ाकर भरती होने लगे. नब बुद्ध ने इस बखेड़ का गेका । महावग्ग १४३) एक दवालिय ने अपने लेवालिया को करने की तहरीरें ।इणपणणानि = ऋणपर्ण) लेकर गंगातीर पर पाकर अपना पावना लजाने के लिय बुलाया था रुरुजातक बू प.पृ५ एक धनवान ब्राह्मण का पुत्र अपनी विगमन सम्हालने गया और मोने के पत्र पर अपने पुरखाओं के लिखे धन के बीजक के अक्षर 'अखगनि। बांच कर उसने अपनी संपत्ति का पग्भिाण जाना कणह जातक) काशी के गजा की गनी खमा ने स्थान में स्वर्णमृग देखा और कहा कि यदि मुझे यह न मिला तो मैं मर जाऊंगी. इस पर गजा ने माने के पत्र पर एक कविता खुदवा कर मंत्री का दी और कहा कि इमे मांर नगरवासियों को मुना दो उम कविता का भाव यह था कि जो कार्ड इस मृग का पता देगा उसे गांव और गहनों से भूषित स्त्रियां दी जायेगी (करुजानक. गजा की प्रामा से कुरु जाति के पांच प्रधान धर्म (अहिसा अम्तय परस्त्रीगमननिषेध, मिथ्याभाषणनिषेध और मद्यपाननिषध सोने के पत्र पर खुदवाये गये (कुरुधम्म जातक) बोधिसत्य की प्रामा म चिनिच्छयधम्म (विनिश्चयधर्म) भी ऐसे ही खुदवाये गये थे (तेसकुन जातक 1 e
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