४ प्राचीनलिपिमाला. दम दम स्टेडिआर के अंतर पर पाषाण लगे हैं, जिनसे धर्मशालाओं का तथा दूरी का पता लगता है, नये वर्ष के दिन भावी फल (पंचांग) सुनाया जाना है, जन्मपत्र बनाने के लिये जन्मसमय लिम्वा जाता है और न्याय 'स्मृति के अनुसार होता है.' इन दोनों लेग्यकों के कथन से स्पष्ट है कि ई.म. पूर्व की चौथी शताब्दी में यहां के लोग रूई (या चिथड़ों) से कागज़' बनाना जानते थे, पंचांग तथा जन्मपत्र बनते थे जैसे कि अब तक चले आते हैं और मीलों के पत्थर तक लगाये जाते थे. ये लेग्वनकला की प्राचीनता के मृचक हैं. बौद्धों के 'शील' ग्रंथ में यौद्ध साधुओं (श्रमणों) के लिय जिन जिन बातों का निषेध किया गया है उनमें 'भावरिका' (अक्षरिका) नामक खेल भी शामिल है, जिस बालक भी खेला करते थे. इस म्बल में स्खलने वालों को अपनी पीठ पर या आकाश में [अंगुलि से] लिम्वा हुआ अक्षर बुझना पड़ता था. 'विनय' मंबंधी पुस्तकों में लेग्व' (लिग्वने की कला) की प्रशंसा की है" और यौद्ध आर्याश्री के लिये मांसारिक कलाओं के मीग्वने का निषेध होने पर भी 'लिग्वना सीखने की उनके वास्ते अाज्ञा है". यदि कोई बौद्ध माधु (श्रमण) किसी मनुष्य को प्रात्मघान की प्रशंसा में (लग्वं छिन्दति) तो उसे प्रत्येक अक्षर के लिये दुष्कत (दुष्कृत-पाप) होगा". और गृहस्थियों के ल- ड़कों के वास्ते लिम्वने का पेशा सुम्व से जीवन निर्वाह करने का माधन माना गया है". पुनक कुछ लिव 7 २ a भ विद्वान् को अपना गजदूत बना कर मौर्यवंशी गजा चंद्रगुप्त के दरबार ( पाटलिपुत्र ) में भेजा था वह ५ वर्ष के लगभग यहां रहा और उसने इस देश के विषय में इंडिका' नामक पुस्तक ई.स पर्व की चौथी शताब्दी के अंत के आसपास लिखी. जो नए होगई परंतु दूसरे लेखकों ने उससे जो जो अंश उद्धृत किया है वह उपलब्ध है एक स्टेडिअम (Stadiun.) ६०६ फुट ६ इंच का होता है । संडिया 'मोडिभम शब्द का बहुवचन है। ई में. १२५-२६ ई. म. पृ ई में-पृ. १२६ मॅगस्थिनीज़ ने मूल में स्मृति (धर्मशास्त्र) शन्न के अर्थ याददाश्त का प्रयोग किया है. जिसपर से कितन एक यूरोपियन विद्वानों ने यहां पर उस समय लिख हुए कानून का न होना मान लिया है, परंतु बलर ने लिखा है कि मॅगम्धिनीज़ का आशय 'स्मृति के पुस्तको से है (बू प.पृ६. विलायती कागज़ों के प्रचार के पूर्व यहा पर चिथड़ों की कट कट कर उनके गूद मे कागज़ बनाने के पुराने दंग के कारखाने कई जगह थे, परन्तु विलायती कागज़ अधिक सुंदर और मस्त होने से वे बंद हो गये तो भी घोमुंडा ( मंत्राद में आदि में अब तक पुराने ढंग से कागज़ बनत है बौद्ध धर्मग्रंथ 'सुतंत' (मत्रांत) के प्रथम खंड के प्रथम अध्याय में जो युद्ध के कथापकथन है ये शोल' अर्थात 'प्राचार के उपदेश' कहलाते हैं उसके मंग्रह का समय डॉ गरम डेविड़ज़ ने स पूर्ण काम पास यन- लाया डे बु.१०७), किनु बौद्ध लोग 'शील' को म्वयं बुद्ध का बचन मानने के ग्रह्मजालसुत्त. १४ सामअफलसुत्त. ४६. ई.पू जिस वर्ष धुद्ध का निर्वाण हुआ उसी वर्ष (ईम पूर्व ४८७ के प्रामपाम) उनक मुख्य शिष्य काश्यप की इच्छानुमार मगध के गजा अजातशत्रु की महायता से गजगृह के पाम की समपर्ण गुफा के बड़े दालान में बोडों का पहिला संघ एकत्र हुआ जिसमें ५०० अर्हत (बड़े दरंज के माधु) उपस्थित थे वहां पर उपालि ने जिमको म्वयं बुद्ध ने 'विनय' का अहितीय भाना माना था, 'विनय' सुनाया. जो बुद्ध का कहा हुआ विनय माना गया याद्री धर्मग्रंथों के तीन विभाग ‘धिनय.' 'सुत्त' (सूत्र) भार 'अभिधम्म (अभिधर्म) है जिन्म में प्रत्येक का 'पिटक' कहत है प्रत्यक पिटक में की ग्रंथ है और तीनों मिलकर त्रिपिटिक कहलाने है. विनय में बौद्ध माधुओं के प्राचार का विषय है श्रील्डनयर्ग के मन में 'विनय' के किननं एक अंश ई.म. पूर्व ४०० म पहिल के है १. डायपृ. १०८. भिवण्यपाचित्तिय ९.७ पृ १०८ ई वु..पृ.१०८-६ " ई.बु : पृ १०८ 5 71 2
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