Plate XXVI. लिपिपत्र २६वां. चंद्रदेव के दानपच, हललिखित पुस्तक और मामल्लदेव के खेस से. (ई. म को ११वीं और १२वीं शताब्दी) कीज के गाइडवान राजा चन्द्रदेव के दानपत्र से मुख्य मुख्य प्रवर (वि. सं. १९५४ = ई. म. १५-६ ) श्री हे वि र्ण र्थि श्री ष्ण १ ल ज ५ d म स का शा है कि लाल । ध धा म. a. द ऋ पसलिखित पुसको मे मुख्य मुख्य पहर (ई.स. को ११वीं शताब्दी). ऐ यो यो मट स्ट र ऐ उ अ अ प्प प्प ल ए घ 9 do Cp छ ज म थ फ भ म म स ट ब थे E E उ ३ वर रु श a स ऊ उ रं 2 हाण गा म हव वंशी राजा जाजलदेव के समय के लेख से (कारि मं.८६ ई. म. १९१४ ). मा ई उ ए ऐ क ग च ज ट ठ श त थ म मा ८ हे उ क उवा नऊ ट ठर ( लत ८ व म ष म ह ang a** Ania न 4 न प पर त म य र ल व ल ष स ह त ? ज्य प्रे ब्धि ण म श्री टा. r ले (ह छ त ल्ल रस छीना . त ई ज्या हे ह य मासा द्यानाकायत हे ट्या। त्यासन- प्रिया सत॥३॥ तेषी हे दयनूनी समन व ई से सदान- र: गोको कल कति स्म र प्रति कृतिविमोदौ यतः। येनार्य वितासो या मन मातुं यः स्वीयं पिषितमुच्चाः कि यदि ति वत्माड मनःहिति ॥॥ अषार या स्य निकुं निवि-
पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२५६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।