१६५ भारतीय संवत् हिंदुस्तान में मुसलमानों का अधिकार होने पर इस सन का प्रचार इस देश में हुमा और कभी कभी संस्कृत लेखों में भी यह सन् मिल पाता है. इमका सब से पहिला उदाहरण महमूद ग्रज़नवी के महमूदपुर (लाहोर ) के सिक्कों पर के दूसरी और के संस्कृत लेवों में मिलता है जो हिजरी सन् ४१% और ४१६ (ई. स. १०२७ और १०२८ ) के हैं. २७-शाहर सन् शाहर सन् को 'मूर सन्' और 'अरबी मन्' भी कहते हैं. ' शाएर सम्मान की उत्पति का ठीक पता नहीं लगता परंतु अनुमान है कि परवी माया में नहीने को 'शहर' करते हैं और उस का बहुवचन 'शहर' होता है जिनगर म 'शाहर शब्द की उत्पति हुई हो. यह मन हिजरी मन् का प्रकारांतर मात्र है. हिजरीतर के चांद्र मास की माने गरे है जिन ने इस पर का वर्ष सौर वर्ष के बराबर होता है और इसमें मौसिन और महीनों का मंच बना रहता है. इस मन में ५६६-६०० मिलाने से ई स. और ६५३-५७ मिलाने मे वि. म. माना है इसमे पापा जाना है कि भारीव १ मुहरम् हिजरी मन् ७४३ (ई म १४४ नारीव १५ मई-वि. सं १४०१ ज्येष्ठ शुका २) मे, जय कि सूर्य मृगशिर नक्षत्र पर आया था, इसका प्रारंभ हुमा इसका नया वर्ष सूर्य के मृगशिर नक्षत्र पर आने के ( मृग रविः ) दिन मे बैठना है जिससे इमके वर्ष को 'मृग साल' भी कहने हैं. इसके महीनों के नाम हिजरी मन के महीनों के अनुसार ही है. यह मत् किमने चलाया इसका ठीक ठीक पता नहीं चलता परंतु मंभव है कि देहली के मुल्तान नुहम्मद तुग़लक (ई. म. १३२५-१३५१) ने, जिसने अपनी गजधानी देहली मे उठा कर देवगिरि ( दौलताबाद ) में स्थिर करने का उद्योग किया था, दोनों फसलों (रपी और खरीफ़) का हासिल निधन महीनों में लिये जाने के लिये इसे दक्षिण में चलाया हो जैने कि पीछे मे अकबर बादशाह ने अपने राज्य में फनती मन् चलाया इन मन् के वर्ष अंकों में नहीं किंतु अंक मूचक अरबी शब्दों में ही लिये जाने हैं मरहठों के राज्य में इस सन् का प्रचार रहा परंतु अब तो इसका नाममात्र रह गया है और मराठी पंचांगों में ही इसका उल्ने व मिलता है। . . देखो, ऊपर पृ १७५ श्रीर उसीका टिप्पण ४ ऍपवर थॉमन विन क्रॉनिकल्स ऑफ दी पठान किग्ज आफ् देहली पृ ४८. 2. ग्रंट डफ रचित 'हिस्टरी ऑफ दी मराज जि १.० टिमग. . ई म १८६३ का संस्कार ४. इस सन् के वर्ष लिखने में नीचे लिके अनुसार अंकों के स्थान म उन मूवक प्रारी श-दी का प्रयाग किया जाता है. मराठी में अग्बी शब्दों के रूप कुछ कुछ बिगड़ गरे ? जो ( वि के नाता टी मानस क मराठी- अंग्रेज़ी कोश के अनुसार दिये गये है. अदद ( अहदे. इहंद ). २ - अन्ना ( इसने । ३ - सनासह मजास प्रावा. ५=खम्सा ( खम्मस) =मित्ता (मित ? मित). ७ =समा ( मम्मामानि प्रा ( मम्मान ) मा निस्पा), १० अशरः ११-प्रहद अशर, १२-प्रस्ना ( हसने ) अशा १३% लामद ( सजास) अशर, १४ प्रत्या अरार २०=अशरीन्, ३०- सलासीन् । मल्लामीन) ४०अरनि, ५०-खम्सीन् , ६०%मितीन् (मितैन ।, ७०% सबीन ( मन) ८०%समानीन् (सम्मानीन);६०=निसईन् (तिस्सैन); १००%माया ( मया ।, २००प्रअमीन (मयानन ); ३०० ललास माया ( मल्लास मया), ४००-भरबा माया, १०००%प्रलफ् ( मलफ) १००००-अशर अलक. इन अंक मूचक शब्दा के लिखन में पहिले शब्द स इकाई, दूसरे से दहाई, तीसरे से सैंकड़ा और चौथे से हज़ार बतलाये जाते हैं जैसे कि १३१३ के लिये 'सलासो प्रश्रेष सलास माया धमला' " ज्योतिषपरिषद के नियमानुसार रामचंद्र पांडुरंग शास्त्री मोघे वसईकर के तय्यार किये हुए शक संवत् १८४० (चैत्रादि वि सं. १९७५ ) के मराठी पंचांग में वैशाख कृष्णा १३ ( अमांत-पूर्णिमांत ज्येष्ठ कृष्णा १३ ) शुक्रवार को 'मृगार्क' लिखा है और साथ में फसली सन १३२८ अर्वी सन १३१६ सूरसन 'निता अशर सलासे मया व अलक' लिखा है (तिसा-६, अशर-१०; सल्लासे मया-३००, पौर: अलफ- १००० ये सब अंक मिलाने से १३१८ होते है).
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