भारतीय संधत्. १८९ उत्तरी हिंदुस्तान के शिलालेखादि में वाहस्पत्य संवत्सर लिखे जाने के उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं परंतु दक्षिण में इसका प्रचार अधिकता के साथ मिलता है. लेखादि में इसका सपसे पहिला उदाहरण दक्षिण के चालुक्य (सोलंकी) राजा मंगलेश (ई. स ५६१.६१०) के समय के बादामी (महाकूट ) के स्तंभ पर के लेख में मिलता है जिसमें सिद्धार्थ संवत्सर लिखा है। २३-ग्रहपरिवृत्ति संवत्सर ग्रहपरिकृति संवत्सर ६० वर्ष वा एक है जिसके १० वर्ष पूरे होने पर किस वर्ष से हिना हरू की है. इसका प्रचार पहुधा द्रास हाते के मदुगविल में है इसका प्रारंभ वर्तमान कहियुग संवत ३०७६ (इ. स. पूर्व २४ ) से होना पतलाते हैं. वर्तमान कलियुग संवत में ७२ जाड र ६० का भाग देने से जो बचे यह जल चक्र का मान घर्ष होता है; अश्या वर्तमान शक संवत में ११ जोड़ कर ६० का भाग देने से जो पचं वह वर्तमान संचार होता है. इसमें समर्षि संवत की नई वर्षों की संख्या ही लिदी जाती है २४. सौर वर्ष. सूर्य के मेष से मीन तक १६शियों के अंग के समय का सार वर्ष करते हैं सौर वर्ष बहुधा ३६५ दिन, १५ घड़ी, ३१ पल और विपक्ष का माना जाता है (इसमें कुछ कुछ मत भेदं भी है). सौर वर्ष के. १२ हिस्से किये जाते हैं जिनको सौर मास कहते हैं. सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश की संक्रांति ( मेष से मीन तक ) कहते हैं. हिंदुओं के पंचांगों में मास, पक्ष और तिथि मादि की गणना तो चांद्र है परंतु संत्रांतियों का हिसाब सौर है बंगाल, पंजाय छादि : सर के पहाड़ी प्रदेशों तथा दक्षिण के उन हिस्सों में, जहां कोरूम संचत का प्रचार है, पहुधा सौर वर्ष ही ध्यवहार में पाता है. कहीं महीनों के नाम स्त्रांतियों के नाम ही हैं और कही त्रादि नामों का प्रचार है. जहां चैत्रादि का व्यवहार है यहां मेष को वैशाख, वृष को ज्येष्ट शादि कहते हैं सौर मान के मासों में १ मे २९, ३०, ३१ या २ दिनों काही व्यवहार होना , तिथियों का नहीं यंगालवाले संक्रांति के दूसरे दिन से पहिला दिन गिनते हैं और पंजाय आदि उतरी प्रदेशों में यदि संक्रांति का प्रवेश दिन में हो तो उसी दिन को और रात्रि में हो तो दूसरे दिन को पहिला दिन (जैसे मेषामुक्तदिन १, मेषगते १, मेषप्रविष्टे १) मानते हैं. २५ चांद्र वर्ष दो चांद्र पंक्ष का एक चांद्र मास होता है. उत्तरी हिंदुस्तान में कृष्णो १ से शुक्ला १५ तक (पूर्णिमांत) और नर्मदा से दक्षिण में शुक्ला १ से अमावास्यों तक (अमांत ' ) एक चांद्र मास माना उदाहरण-शक संवत् १८४० में याहस्पत्य संवत्सर कानसा होगा? १८४०+१२-१८५२.३०. शंष ५२ : इसलिये वर्तमान संवत्सर ५२ वां कालयुक्त. गत शक संवत् १८४० गत कलियुग संवत् ( १८४०+३१७६ = ) ५०१६. २०१८+१२=५०३१. "=८३, शेष ५९ गत संघत्सर. इस लिये धर्तमान - ५२ बां कालयुक्त संवत्सर. । उत्तरोत्तरप्रवर्द्धमानराज्य.......वर्षे प्रवर्तमाने सिद्धाघे वैशाखपोगर्णमास्याम ईएँ, जि १६, पृ १८ के पास का मेट). १. मूल सूर्यसिद्धांत के अनुसार (पंचसिद्धांतिका) २. मूल गणना अमांत हो ऐसा प्रतीत होता है. उत्तरी भारतवालों के घर्ष का एवं अधिमास का प्रारंभ शुक्ला १ से होना तया अमावास्या के लिये ३०का अंक लिखना यही बतलाता है कि पहिले मास भी वर्ष की तरह शुक्ला १ से प्रारंभ होकर अमावस्या को समाप्त होता होगा.
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