पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२१२

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प्राचीनलिपिमाला. कार्तिकादिर है इस लिये चैत्रादि और भाषाढादि १३२१ होगा जिससे विक्रम संवत् और सिंह संवत् के बीच का अंतर (१३२१-१५१%) ११७० ही पाता है. इस संवत्वाले थोड़े से शिलालेख काठियावाड़ से ही मिले हैं और पौलुक्य भीमदेव (दूसरे) के उपर्युक्त वि. सं. १२६६ के दानपत्र में विक्रम संवत् के साथ सिंह संबत दिया है जिसका कारण यही है कि वह दानपत्र काठियावाड़ में दान की हुई भूमि के संबंध का है. इस संवत् का प्रारंभ भाषाढ़ शुक्ला १ (अमांत) से है और इसका सब से पिछला लेख सिंह संवत् १५१ का मिला है. १८.--लक्ष्मरणसेन संवत् यह मंवत् बंगाल के सेनवंशी राजा बल्लालसेन के पुत्र लक्ष्मणसेन के राज्याभिषेक (जन्म से चला हुआ माना जाता है. । ढखो, ऊपर पृ. १७५ और उसी का टिप्पण ५ ..ई.स ११६८- के आसपास (ई. एँ. जि १६. पृ. ७) देहली के गुलाम सुलतान कुतबुद्दीन ऐबक के समय बस्तिबार खिलजी ने नदिया पर चढ़ाई कर उसे ले लिया और वहां का राजा लक्ष्मणसन भाग गया. इस चढ़ाई का वृत्तांत मिनहाज उस्सिराज (जन्म ई. स १९६३ - देहांन ई स १२६५ के पीछे) ने 'तबकास इ नासिरी' नामक इतिहास के पुस्तक में इस तरह लिखा है कि गय लखमणिश्रा ( लक्ष्मणसन ) गर्भ मे था उस वक़ उसका पिता मर गया था उसकी माता का देहांत प्रसववंदना से हुश्रा और लखमणिमा जन्मते ही गद्दी पर बिठलाया गया उसने ८० वर्ष राज्य किया (तबकात-इ-नासिरी का अंग्रेजी अनुवाद मेजर रावर्टी का किया हुआः पृ ५५५१ लक्ष्मणसन संबन का प्रारंभ ईस १९१६ में हुआ जैसा कि आगे लिखा गया है, इस लिये यख्तिार खिलजी की लक्ष्मणसन पर की नविश्रा की चढ़ाई लक्ष्मणसेन संवत् (११६८-१९१५% ) ८० में हुई. जब कि लदमासन की उम्र २० वर्ष की थी और उतने ही वर्ष उसको गज्य करते हुए थे 'लघुभारन' नामक संस्कृत पुस्तक में लिखा है कि परंपरागत जनश्रुति मे यह प्रवाद सुनने में आता है कि बल्लाल (वल्लालमेन, लक्ष्मणसेन का पिना) मिथिला की चढ़ाई में मर गया जय ऐमा संवाद फैला उमी ममय विक्रमपुर में लक्ष्मण का जन्म हुआ' (प्रवाद. श्रूयते चात्र पारम्परीगावानया । मिथिन युद्धयात्राया यमालाभन्मत निः ।। नदानी विक्रमपुर नन्मगाः जानतानमो। लघुभारत, खण्ड २: ज.ए सा बंगा स १८६ यह कथन मिनहाज की सुनी हुई बात म मिलता जुलना ही है परंतु इसमे पाया जाता है कि लरमणसन का जन्म हुआ उम समय यल्लालसन के मिथिला में मर जान की खानी अफवाह ही उड़ी थी संभव है कि इस अफवाह के उड़ने से विक्रमपुर में लक्ष्मणसन गही पर बिठला दिया गया हा और उसके जन्म की खबर पाने पर बल्लालसेन ने मिथिला में रहते समय पुत्रजन्म की खुशी में यह संवत् चलाया हा लाल सेन ने शक संवत् १०७(ई स में 'दानमागर' नामक ग्रंथ रचा ( निग्विलचक्रातलक श्रीमद्वालालमेनेन । पूर्ण शशि- नवदशमित शकवणे दानसागरो रचितः ॥ दानसागर, ज ए मो बंगा, ई स १८६६. भाग १. पृ २३ । डॉ गजेंद्रलाल मित्र ने बंगाल के सेनवंशी गजाओं के समय का निर्णय करने में दानसागर की सहायता ली और उसकी रचना का लोक भी टिप्पण में उड़न किया पृर्गा गिनवदामिन शकान्द-ज. ५ मेो यंगा; ई म १८६५ पृ १३७ । परंतु उसका अनुवाद करने में गलती की और शक संवत् २०६४ के म्यानपर १०१६ (ई स २०६७ ) लिख कर बल्लालसन का समय ई म १०५६ से ११०६ तक मान लिया जो ठीक नहीं है बल्लालसेमरचित 'अद्भुतसागर' नामक यह ग्रंथ के प्रारंभ की भूमिका में लिखा है कि गीडेंद्र ( यल्लालसन) ने शक संवम् १०६० (ई. स. ११६८) में अदभुतसागर का प्रारंभ किया परंतु उसके समाप्त होने के पूर्व ही उसने अपने पुत्र (लक्ष्मणसेन) को राज्यसिहासन पर बिठलाया और अपने ग्रंथ को पूर्ण करने का भार उस पर डाला. फिर गंगा मै अपने दान के जल के प्रवाह से यमुना का संगम बना कर अपनी स्त्री महिन स्वर्ग को गया ( अर्थात् डूब मरा) और लक्ष्मणसेन के उद्योग सं भवभुनसागर' पूर्ण हुमा' । शाके खनवग्वेन्द्वब्दे पारेभेऽद्भुतसागर । गोडेन्द्रकुञ्जरालानस्तम्भबाहुर्महीपतिः ॥ मन्येऽस्मिन्नसमाप्त एवं तनय साम्राज्यरक्षामहादीक्षापणि दीक्षणान्निजकृते निष्पत्तिमभ्यर्थ्य सः । नानादानचिताम्बुसंचलनतः सूर्यात्मनासंगमं गङ्गाया विरचय्य निर्ज- रपुर भार्यानुयातो गतः ॥ श्रीम-लक्ष्मगासेनभृपतिरतिश्लाघ्यो यदुद्योगतो निष्पनी व्रतसागरः कृतिरसौ बल्लालभूमीभुजः । अद्भुतसागर ) यदि लक्ष्मणसेम के जन्मसमय (ई स १११६ में ) बल्लालसेन की अवस्था २० वर्ष की माने तो अदभुतसागर के प्रारंभ के