प्राचीमलिपिमाला. गोल या चतुरस्र पलों पर खुदे हुए मिलते हैं. तांबे आदि के बरतनों पर उनके मालिकों के नाम खदाये जाने की प्रथा भी प्राचीन है. कभी कभी तांबे के पत्रों पर पुस्तकें भी खुदवाई जाती थी. पीतल. जैन मंदिरों में पीतल की बनी हुई पड़ी घड़ी कई मूर्तियां मिलती हैं जिनके पासनों पर और छोटी मूर्तियों की पीठ पर लेख खुदे रहते हैं. ऐसे लेम्बोंवाली १००० से अधिक जैन मूर्तियां मेरे देखने में भाई हैं जिनपर के लेख ई.स. की ७ वीं से १६ वीं शताब्दी तक के हैं. जैन मंदिरों में पीतल के गोल गहे रक्खे हुए मिलते हैं जिनपर 'नमोकार मंत्र और यंत्र खदे रहते हैं. कांमा कई मंदिरों में लटकते हुए कांसे के घंटों पर भी उनके भेट करनेवालों के नाम और भेट करने का संवत् भादि खुदा हुमा मिलता है. लोहा. लोहे पर भी लेख खोदे जाने के कुछ उदाहरण मिल पाते हैं देहली (मिहरोली) के कुतुब मीनार के पास के लोह के स्तंभ पर राजा चंद्र का लेग्व खुदा है जो ई म. की ५ वीं शताब्दी का है. माबू पर अचलेश्वर के मंदिर में खड़े हुए लोहे के विशाल त्रिशूल पर वि. सं. १४६८ फाल्गुन सुदि १५ का लंग्व खुदा हुआ है चित्तौड़ आदि कई स्थानों में लोहं की मांगों पर भी लेख खुद हुए मिलते हैं. सोने, चांदी, तांबे और मीसे के सिक्कों के उप लोह के ही बनने थे और उनपर अचर उलटे ग्वोदे जाने थे काली स्याही कागज पर लिखने की काली स्याही (मसी) दो तरह की होती है पकी और कबी. पकी स्याही से पुस्तकें लिम्वी जानी हैं और कच्ची स्याही से व्यापारी लोग अपनी वही भादि लिम्वते हैं पक्की स्पाही बनाने में भाये मंगल का त्रिकोण यंत्र कई लोगों के यहां मिलता है अजमेर के संभवनाथ के जैन ( श्वेताम्बर ) मंदिर में कोटी हाल जैसा बड़ा एक गोल यंत्र रक्खा हुआ है, जिसको ‘यासस्थानक' का यंत्र कहते हैं । विपती ( मद्रास इहाने में ) में तांबे के पत्रों पर खुदे हुए तेलुगु पुस्तक मिले है। बी. सा. ६, पृ.८६) हुए रसंग के लेख से पाया जाता है कि राजा कनिष्क ने प्रसिद्ध विद्वान पार्श्व की प्रेरणा से कश्मीर में बौदसंघ एकषित किया जिसने खुत्रपिटक पर 'उपदेशशास्त्र', विनयपिटक पर 'विनयविभाषाशा और अभिधर्मपिटक पर 'अभिधर्मविभाषा- शाख' नामक लाख लाख श्लोकों की टीकाएं तैय्यार की कनिष्क ने इन तीनों टीकामों को नाप्रफलकों पर खुदवाया और उनको पत्थर की पेटियों में रख कर उनपर स्तूप बनवाया' (बी; बु रे.. जि १, पृ. १४ एन्संग की भारतीय यात्रा पर थॉमस पॉटर्स का पुस्तक, जि. १, पृ. २७१). ऐसी भी प्रसिदि है कि सायण के वेदमाण्य भी गांव के पत्रों पर खुदवाये गये थे ( मॅक्समूलर संपादित ऋग्वेद, जि . पृ.XVII ). १. भावू पर अचलगढ़ जैन मंदिर में पीतल की बनी दुई । विशाल और कुछ छोटी मूर्तियं स्थापित है जिनके भासनों पर ई. स की १५ वीं और १६ वीं शताब्दी के खेडरे हुए हैं. अन्यत्र भी ऐमी मूर्तियां देखने में भाती है परंतु इतनी एकसाथ नहीं.
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