पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१६७

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धर्तमान लिपियो की उत्पनि 27 घ--.७, नी ४४ ('जा' में ); चौ. ४ ('ज्ञा' में ). ट ६.४५ (पादामी का लेग्ब ); ती. दूसरे से बना; चौ. ४८; पां. ५१ (दोनेपुंडी का दानपत्र हु प २ (ग्वालसी द. ७नी ४४ (मृगशवर्मन का दानपत्र); चौ ५० -- इ. ती ४७. ची ५०. ण दू. १२; नी ४५; चौ. ४८; पां. ४६. त इ.६ मी. ४७, ची. ४८ ५ द.४४ ( काकुस्थवर्मन का दानपत्र); ती ४७. द प.. (जोगड़ ); द. नी. ४३ (पिकिर का दानपत्र ): चौ ४८, पां. ५०. धद.६ (गौतमीपुत्र शातकर्णी के लेग्व ); ती १३, चौ. ४६, पां. ५० न द ४ ( उम्पल्लि का दानपत्र ); ती. ४५ ( चंडलर का दानपत्र); चौ. ५०. प द६ ( वासिष्ठीपुल के लेग्व); ती ४५ ; ची ५०. पा ५१ ( राजा गाएदेव का दानपत्र ) फ द.::ती. ४३ चौ ४७शं. ५०. व द. ४ (विष्णुगोपवर्मन का दानपत्र ) ;नी ४३ । मिहवर्मन का दानपत्र ); चौ. ४७. भ इ. ४४ ( मृगशवर्मन का दानपत्र ; नी ४८; नौ ४६ ; पां. ५०. द.६;नी ४४ ( मृगशवर्मन का दानपत्र ; चौ ४६ : पां. ५०. य द. ७; नी. ४३ चौ. ४५, पां४८. दृ. ७; ती. ४ चौ. ४७: पां. ४८. ल दृ.८: ती ४८ मृगशवमन का दानपत्र); बी. ४८ ब द सी. १; चौ ४६; पां. ५.. प. ( ग्वालमी ): द. ७, नी ४८ ( मृगशवर्मन का दानपत्र '; चौ ४५; पां. ५. प. : (घोसुट्टी के पं में ): द. ४४; ती. ४५ : चौ. ५०; पां. ५१. इ. ४७: ना. ४८. है दृ. ७; नी. ४ः; ची... पां ५१. प. ७४७ मी. ५०; चा. ५१ ( वनपल्ली का दानपत्र). वर्तमान कनड़ी लिपि का 'च' प्राचीन उसे नहीं बना किंतु म के माथ '3' की मात्रा जोड़ने से बना है उनी 'उ' में बना है 'ऋ का कोई प्राचीन प नहीं मिलता. संभव है कि उष्णी- पविजयधारणी के अंत की वर्णमाला के ऋजमे ही अक्षर में विकार हो कर वह पना हो, 'ऐ और भी उनके प्राचीन रूपों में ही यन हैं. 'लिपिपत्र के रे में, और 'औ' लिपिपत्र ४३ और ५. में मिलनेवाल श्री में बना है'. म 7 श ष स ट . लिपिपत्र वा इम लिपिपत्र में ग्रंथ और नामिट लिपियों की उत्पत्ति दी गई है. ग्रंथ निपकी उत्पत्ति ग्रंथ लिपि की उत्पत्ति में पहुया प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ के कुछ रूप वे ही हैं जो कनही लिपि की उत्पत्ति में दिये गये हैं. इम लि। ऐसे म्पों को छोड़ कर पाकी के रूपों ही का विवंचन किया जायगा. मी. ५२ (मामल्लपुरम् के लेव); चौ. ५४ ( उदयदिग्म का दानपत्र); पां. ५६ १. पां. ४ ( मंदिवर्मन् का दानपत्र ). १. वर्तमान नेलुगु लिपि कनही न थान मिलती है जिन अन में विशेष अंतर है घेउ, ऋ, क, त, श और है. इनमें में उसके प्रार्चान पसे बना है। विकासश्रम के लिय दम्बा. प्रमश लिपिपत्र ४४, और ५० में मिलन बाले त अक्षर के रूप) ककनड़ी की उत्पत्ति में दिये हुए उक्त अक्षर के पांचवे रुप की आड़ी लकीर और नीचे के इस को हती कलम मे कुछ अंतर के साथ लिखने में बना है. तक बाई और अंत में ग्रंथि और लगा दी है. 'श' और भी कमढ़ी की उत्पत्ति में दिये हुए उक्त प्रक्षक उपन्य रूपों के विकार मात्र