२. -खरोष्ठी लिपि के चंक. (लिपिपत्र ७६ के उत्तराईका द्वितीय संस। स्वरोष्टी लिपि के अंक उक्त लिपि की नाई विदेशी हैं. अरबी और फारसी की नाई खरोष्ठी लिपि दाहिनी ओर से पाई और लिखी जाती है परंतु उसके अंक अरबी और फारसीके अंकों की नाई पाई चार से दाहिनी ओर नहीं लिलं जातं किंतु दाहिनी ओर से बाई ओर लिम्वे जाते हैं जिसका कारण यही है कि वे अंक भरवी और फारसी के अंकों की नाई भारतीय अंकों से नहीं निकले किंतु सेमिटिक फिनिशियन् ( या उनसे निकले हुए परमहक ) अंकों से निकले हुए प्रतीत होते हैं. ई.स. पूर्व की तीसरी शताब्दी से भारतवर्ष में इन मंत्रों का कुछ पता लगता है अशोक के शहबाज- गड़ी के लेख की पहिली धर्माज्ञा में और के लिये क्रमशः एक (I) और दो (॥) वड़ी लकीरें, तीसरी में के लिये पांच (m) और १३वी में ४ के लिये चार (1) खड़ी लकीरें मिलती है. ऐसे ही अशोक के मान्सेरा के लेख की पहिली धर्माज्ञा में १और के लिये क्रमशः एक (1) भार दो (1), और नामर्ग में पांच के लिये पांच ( 1 ) स्वीकार खुदी हैं. इससे पाया जाता है कि उस समय तक तो तक के लिये इन अंकों का बही क्रम रहा हो जो फिनिशिमन में मिलता है. अशोक के पीछे शक, पार्थिन और कुशनशियों के समय के खरोष्टी लेच्चों में ये अंक विशेष रूप में मिलते हैं उनमें १, २, ३, ४, १०, २० और १०० के लिये पृथक पृथक चिज हैं ( देवी, लिपिपत्र ७६ में परोष्टी अंक). इन्हीं ७झिा से 8 तक के क लिन्चे जाते थे इन अंकों में ! सेहत के लिये पाक्रम था कि ५ के लिये ४ के अंक की बाई ओर १६ के लिये ४और २७ के लिये और 1;८ के लिये दो चार ४; और हलिये ४,४ और लिग्वे जात ११ मे १६ तक के लिये १० की पाई और उपर्युक्त क्रम मे १ से हनक के अंक लिम्बे जाते थे, २० से कविकोपाई भोर १ मेहतक और ३० के लिये और १०लिग्वे जाते थे ११ में RE तक के अंक २०,१० और १ महनक के अंको का मिलान में धनते थे, जैसे कि ७४ के लिये २०, ००.२०, १०और ४ और E के लिये २०.२०, ....०.१०.४, ४ औः १ १०० के लिये उक्त विभ के पूर्व बाब रघमा जाना था....के हिय १०० के पूर्व का और कलियंकाक हिमाजाना था. ४...हि.५० पूर्व ४ का िािजाता था या भार स्वीकारें बनाई जाती थी उसका कुछ पता नहीं चलताषयोंकि ७४ के धागे का कोई अंक अष नक नहीं मिला अशोक के पालक उपर्यत ७६ो में में १. हार के लिये मशः १.२और सीलकीरें है जो फिनिशिछन क्रम में ही है.४ के अंक का चिजाई.स पूर्व के समिरिक लिपिके. किमी लेव में नहीं मिलता. संभव है कि ब्रामीकं ४ के अंक ( + ) को ही टेंडा लिस्वने से यह चिक बना हो १० का चित्र फिनिशियन के के भाई चिक कामदा लिम्बन में बना हो ऐसा प्रतीत होता है (दो, ऊपर पृ.११३ में दिया एका नक्शा). उसी (फिनिशियन)चिक में पल्माइरावालों का एटीमा कंगन का उक्त अंक काफियमा....काधिक विनिरिकन बंका में मिलने वाले २० के जंक के ४ चिो में से तीसरा है. + इन संघत धाले लेखों के लिये खा. ऊपर पृ ३२, टिप्पण ७, ९:ौर पृ ३३. टिप्पण १
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