पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१२२

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प्राचीनलिपिमाला. राजा करणरदेव (कृष्णराज तीसरे ) के समय के तिरुकोषलूर और वेल्लोर' के लेखों से तय्यार किया गया है इसमें क, छ, द, ण, प, य और 4 में लिपिपत्र ६० से कुछ परिवर्तन पाया जाता है लिपिपत्र ६२वां. यह लिपिपत्र राजेन्द्रचोल(प्रथम) के तिरुमले के चटान पर खुदे हुए लेख '. पगन (वर्मा में) से मिले हुए वैष्णव लेख, विजयनगर के राजा विरूपाक्ष के शोरेकावुर के शक सं. १३०८ (ई. स. १३८७ ) के दानपत्र' और महामंडलेश्वर वालककायम के शक सं १४०३ (ई.स १४८२) के जंबुकेश्वर के शिलालेख से तय्यार किया गया है. तिरुमलै के चटान के लेख का ई उत्तरी शैली की ब्राली का है क्योंकि उसकी दो बिंदियों के बीच की खड़ी लकीर का नीचे का अंश बाई भोर मुड़ कर ऊपर की तरफ बढ़ा हुमा नहीं है. यह ई प्रायः वैसा ही है जैसा कि मथुरा से मिले हुए संवत् ७६ के लेख में मिलता है, और महाचत्रप ईश्वरदत्त के सिकों (लिपिपत्र १०) और अमरावती के लेखों ( लिपिपत्र १२) के ई से भिन्न है क्योंकि उनमें खड़ी लकीर का नीचे का भंश बाई मोर ऊपर को मुड़ा हुआ मिलता है. विरूपाक्ष के दानपत्र और वालककामय के लेख के अक्षरों में से अधिकतर वर्तमान तामिळ अक्षरों से मिलते जुलते हो गये हैं १७-बट्टेलुत्त लिपि ईस की सातवीं शताब्दी के अन्त के आसपास से (लिपिपत्र ६३ मे ६४) यह लिपि नामिळ लिपि का घसीट रूप ही है और इसके अक्षर पहुधा गोलाई लिये हुए या ग्रंथिदार होते हैं इसका प्रचार मद्राम इहाने के पश्चिमी नट तथा सब मे दक्षिणी विभाग में ई स. की ७ वीं शताब्दी के अंत के आसपास मे चोल, पांख्य भादि वहां के राजवंशों के शिला- लेखों और दानपत्रों में मिलता है कुछ समय से इसका व्यवहार बिलकुल उठ गया है. लिपिपत्र ६३ वा. यह लिपिपत्र जटिलवर्मन् के समय के मामले के शिलालेस्वर, उसी राजा के दानपत्र" और घरगुणपांडय के अंबासमुद्रम् के लेख " से तय्यार किया गया है. माणैमले के लेख का 'म' और मा' कूरम के दानपत्र (लिपिपत्र ६०) के उक्त भवरों के कुछ विकृत और घसीट रूप हैं. मुख्य अंतर । जि ७. पृ १४४ के पास के संट, लेखG से २ जि ४, पृ २के पास के सेट से . .जि, २३२ के पास के सेट से . :जि ७, पृ. १६४ के पास के लेट (लेखसंख्या २७) से . ..जि ८, पृ.३०२ और ३०३ के बीच के मेटो से + लिपिपत्र ६२ में वाकलकामय छप गया है जिसको शुद्ध कर पाठक वालककायम पढ़ें • ए., जि. ३, पृ. ७२ के पास के लेट के नीचे के भाग से. ८ , जि. २, पृ ३२१ के पास के मेट चौथे में. इसी लेखकी छाप उसी जिल्ब २०५ के पास के सेट (लेख संख्या २० ) में छपी है परंतु उसमें स्पष्ट नहीं पाया. . . जि.८, पृ. ३२० के पास के मेट, लेख दूसरे से ... जि. २२, पृ. ७०और ७१ के बीच के प्लेटों से. ११ ऍ.. जि. ६, पृ०के पास के पोट से.