पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/६९

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। माविस वेलेजली करनल स्टिवेनसन् एक और सेना लेकर दक्षिण से आये। सन् १८०३ ई० में असेई के स्थान पर जो निज़ाम के राज में है सिन्धिया और राघोजी भोंसला को पलटन से करनैल वेलज़ली का सामना हुआ। इसके पास पांच हजार से कम सिपाही थे। मरहठों के पास पांच हजार थे। फिर भी करनैल वेलज़ली की जीत हुई। इसी साल अरगांव के स्थान पर करनैल वेलेजली ने मरहठों को फिर हरा दिया। ६-इसी बीच में उत्तरीय हिन्दुस्थान में लांसवारी के स्थान पर सिन्धिया की फरांसोसी सेना से जनरल लेक का सामना हुआ। जनरल लेक ने फ़रांसोसियों को भगा दिया और दिल्ली और आगरा को जो बहुत दिनों से मरहठों के अधिकार में थे ले लिया। दिल्ली में लार्ड लेक ने बेचारे बूढ़े शाह आलम को देखा जो अन्धा कैद में पड़ा था। अङ्गरेज़ों ने उसे कैद से निकाला और एक अच्छी पेनशन बांध कर उसको आज्ञा दे दी कि वादशाही महल में रह कर अपने दिन कारें। ७.-अब सिन्धिया और राघोजी भोंसला ने भी अगरेजों के साथ ऐसीही सन्धियां कर लो जैसो बसोन में हो चुकी था। सिन्धिया ने यमुना के उत्तर का सारा देश छोड़ दिया ; राजपूतों और निज़ाम से चौथ मांगने से हाथ खींचा। सिन्धिया ने अरसुनगांव के पास इस सन्धिपत्र पर दस्तख़त किये थे। इस लिये यह अरजुनगांव का सन्धिपत्र कहलाता है। भोंसला के साथ देवगांव में सन्धि हुई, उसके अनुसार भोंसला ने पूर्व में कटक और पश्चिम में बरार अगरेजों को भेंट कर दिया। लार्ड वेलेजली ने बरार निज़ाम को दे दिया। यह सब घटनायें १८०३ ई० को हैं। अगरेजो सेना पूना और नागपुर में ठहराई गई और भोंसला नागपुर का राजा कहलाने लगा। i