पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/५४

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भारतवर्ष का इतिहास कम्पनी के शत्रु उसके भो शत्रु थे। अंगरेजों सिपाहो उसे न बवाते तो मरहठे उसका देश छोन लेते अथवा चौथ लेते । चेतसिंह बड़ा धनी था फिर भी उसने कम्पनी की सहायता न को। होस्टङ्गस् स्वयं बनारस गया कि चेतसिंह से कुछ रुपया चेतसिंह गहो पर से उतार दिया गया और उसका भांजा राजा हुआ। इस विषय में भी फासिस यही कहता था कि हेस्टिङ्गस् ने अत्याचार किया है। ४ -मिस्टर फ्रानसिस इङ्गलेण्ड पहुंचा और ईस्ट इण्डिया कम्पनो से वारेन हेस्टिङ्गस् को शिकायत की। कम्पनो के डाइरेकृरों ने समझा कि वारेन हेस्टिङ्गस् दोषी है और फ्रासिस सत्र कहता है। वारेन हेस्टिङ्गस् पर बड़े बड़े दोष लगाये गये। वारेन हेस्टिङ्गस् अपना पद छोड़ कर विलायत गया और वहां पारलिमेण्ट की सभा में उसका मुकद्दमा हुआ। सात बर्ष उस पर विचार किया गया और वारेन हेस्टिङ्गस् नर्दोष ठहराया गया। ५--इसो अवसर पर इङ्गलैण्ड के प्रधान मन्त्री ने एक नया कानून जारी कराया जिसको पिट्स इण्डिया बिल कहते हैं। ६-इल कानून के अनुसार एक प्रवन्धकारिणी सभा बनाई गई। इसके छ: मेम्बर थे। सभा का काम यह था कि हिन्दुस्थान को गवरमेण्ट को बाग अपने हाथ में रखे। पारलिमेण्ट को अनुमति के बिना किसो देशो राजा या शासनकर्ता से सुलह या लड़ाई न को जाय । सन् १७८४ ई० से यही सभा भारत का शासन करती थी, ईस्ट इण्डिया कम्पनी नहीं।