पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/३५

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अहमदशाह अबदाली २५ । जिससे वह बिना वनिज व्यापार किये सुख से रह सके। सिपाहियों को बहुत दिनों से दोहरी तनखाह मिलती थी। इसको उबल भत्ता कहते थे। उसने यह भी बन्द कर दिया। इस कारण सेना का खर्च बहुत घट गया। ५-क्लाइव इन सब कामों से निश्चिन्त हो कर इङ्गलैंड चला गया। सन् १७४४ ई० में एक दरिद्र लेखक हो कर भारत में आया था और फ़रासोसियों के बल को धूल में मिलाकर कप्तान क्लाइव की पदवी ले कर यहां से लौट गया; सन् १७५६ में कर्नल क्लाइव हो कर दूसरी बार भारत में आया और पलासो की लड़ाई जीत कर बंगाले और मदरास हाते को नोव डाल कर घर लौट गया। सन् १७६० ई० में लाडे क्लाइव बन कर आया और बड़ी कड़ाई के साथ जंगी और मुल्की महकमों में सुधार कर के चला गया। इन सुधारों का करना क्लाइव ही का काम था क्योंकि कोई और करता तो कम्पनी के नौकर उसका कहना कमी न मानते । ६-क्लाइव बड़ा वीर था परन्तु उसका शरीर न पुष्ट था न बलवान । वह रोगी सा रहता था, भारतवर्ष की गरमी और काम की अधिकता से उसका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था । बरस का पूरा हुआ था कि इङ्गले में अपने ही हाथ से उसने आत्मघात कर लिया। पचास ५४-अहमदशाह अबदाली (सन् १७६१ ई०) २-नादिरशाह के मरने पर अफ़ग़ानों ने फारस का जुआ अपने कंधों से उतार फका। अहमद अबदाली एक अफ़ग़ानी सरदार था और अफ़ग़ानी सरदारों ने उसको अपना बादशाह