पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१५३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महायुद्ध में भारत क्या युद्ध पर हम साम्राज्य की सहायता तथा रक्षा के लिये सब प्रकार उद्यत हैं, और यथाशक्ति प्रयत्न करेंगे। १०-बहुत से राजकुमारों तथा रईसों में से जिन्हों ने रणभूमि में जाने को आज्ञा मांगो थो, वाइसराय ने दस बड़े बड़े राज्याधीशों को और बहुत से छोटे रईसों को छांटा। इनमें जोधपूर, बीकानेर, पटियाला, रतलाम और किशनगढ़ के राज्याधीश शामिल थे। इन सब के नेता पूज्य वृद्ध राजपूत योधा महाराजा सर प्रतापसिंह जो थे, जो राजपूतों के राठौर वंश को शोभा हैं। उस समय उनको आयु सत्तर वर्ष से अधिक थी। पहले तो वाइसराय आप को वृद्धावस्या के विचार से आप को रणक्षेत्र में भेजने को सहमत न थे, कि जब आपने चिल्ला कर कहा कि "ऐ! होनेवाला है, और मैं उप्तमें न जा सकंगा ? मैं अपने सम्राट के लिये लहू बहाने के विषय में अपना स्वत्व मांगता हूं। मुझे भेजो, माई लार्ड! मुझे युद्ध में भेजो। मैं इस विषय में किसी प्रकार का इन्कार न मानूंगा।" महाराजा सर प्रतापसिंह का यह आग्रह देख कर लाई हार्डिन ने आप को रण में जाने की आज्ञा दे दी। आप जोधपूर राज्य के संरक्षक हैं। पहिलो लड़ाइयों में भी जो चितराल और तोराह में सीमावाली जातियों से हुई हैं, सरकार के साथ रहे। चीन में भी अपनी सेना जोधपुर लान्सजे के सेनापति बन कर गये थे। आप को मित्र सेनाओं का एक आप के साथ आप के भतीजे जोधपुर नरेश भी थे। यह एक सोलह वर्ष के होनहार शूरवीर युवा ११--अन्य नरेशों में हैदराबाद, मैसूर, ग्वालियर, इन्दौर, बड़ौदा, काश्मीर के आधीशों तथा खान कल्लात ने सेनाओं के लिये योधा, घोड़े, ऊंट, बन्दूक वा धन भेंट किया। राजा नेपाल तथा दलाई लामा तक ने भो, जो भारत की सोमा से बाहर के है, जनरल बनाया गया।