पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१३०

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भारतवर्ष का इतिहास जिन्होंने इस कार्य को पहले बिचारा था, किन्तु उसकी पूर्ति तक जीवित न रह सके। इसके उपरान्त लाहौर तथा अन्य स्थानों में और कई चीफ कालेज रईसों के सुपुत्रों के लिये खोले जा चुके हैं, जहां नवयुवक रईस अपनी प्रजा पर शासन करने के योग्य होने के लिये शिक्षा पाते हैं। इनको केवल पुस्तकों से ही नहीं पढ़ाया जाता, वरन् घोड़े पर चढ़ना, बहुत से वीरोचित खेल, जैसे कि क्रीकेट, पोलो, टेनिस, हौकी आदि खेलना भी सिखाया जाता है, जिस से उनका शरीर तथा दिमाग़ स्वस्थ तथा पुष्ट रहे । १६-लाडे नार्थ ब्रूक के शासन काल की एक बड़ी घटना यह है कि सन् १८७५ ई० में प्रिन्स आफ़ वेलज़ भारत में पधारे, जो कि पीछे से सम्राट एडवडे सप्तम के नाम से सिंहासन पर बैठे । इस अवसर पर कलकत्ते में जो उस समय भारतवर्ष की राजधानी था एक महान् दार हुआ, जिस में भारत के प्रत्येक प्रान्त से बड़े बड़े राजकुमार, रईस, शासनकर्ता तथा सुविख्यात पुरुष अपने भावी सम्राट के दर्शन करने और अपने प्रभु का सम्मान करने के लिये सम्मिलित हुए। ८३–भारतवर्ष महारानी सम्राज्ञो के शासनाधीन अगले पांच वाइसरायों का शासन काल सन् १८७७ ई० से सन् १९०१ ई. तक १--लार्ड लिटन ( सन् १८७६-१८८० ई० ) ने दिल्ली में एक महान् दर्बार किया, जिस में महारानी विकोरिया के भारतवर्ष की महारानी सम्राझी भारतेश्वरो (एम्प्रेस ) होने की घोषणा की गई। राजाओं के महाराजा, तथा बादशाहों के बादशाह के नाम के साथ सम्राट ( एम्पररः) की उपाधि लगती है। कारण