पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/९२

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वैदिक-धर्म ६३ व्याख्या बढे बड़े प्रत्थ लिये गये और लिखे जा रहे हैं। इन स्त्रीका विशेष वर्णन हम "भार्योकी विद्यायें" शीर्षकके नीचे करेंगे। वैदिक अभिधान वैदिक अभिधान भी आजकलकी संस्कृत- के शव-कोशसे भिन्न हैं। इस विषयके दो प्रसिद्ध ग्रन्थ निघण्टु और उणादि कोश हैं। दूसरा परिच्छेद वैदिक धर्म। वैदिक काल में भायं लोगोंका धर्म वही था जिसका उप- देश घेद करते है और जिसकी व्यारया ब्राह्मण-ग्रन्थों और उप- निषदोंमें की गई है । इन पुस्तकों में वे अनुष्ठान भी दिये गये हैं जो वैदिक कालम आर्य विन्दु लोगोंमें प्रचलित थे। वेद अपौरुपेय वैदिक धर्म के विपयमें स्वयं हिन्दुओमें और फिर हिन्दू और यूरोपीय पण्डितोंमें, बहुत मत- भेद है। हिन्दुओंके कई सम्प्रदाय (जिनमें आर्य- समाज सबसे अधिक प्रसिद्ध है) यह मानते हैं कि केवल चार वेद-संहितायें ही ईश्वरकृत हैं, ब्राह्मण, उपनिषद, इतिहास और पुराण उनकी व्यास्था हैं। बहुतसे सनातनधामी यह मानते हैं कि ये सभी पुस्तकें ईश्वरकृत है। इसके अतिरिक्त हिन्दू विद्वानों- में इस विषय में भी मत-भेद है कि घेदका फेवल ज्ञान ही ईश्व- रोप है या उसके शन्द भी। कई सृषि, जिनमें महर्षि पतलि मी एक हैं, केवल ज्ञानको ईश्वरीय मानते हैं । परन्तु दूसरे यात- है।