वैदिक काल और निरुतके निर्माण-काल के बीच बहुत अन्तर होगा। ज्योतिष ज्योतिष विद्या हिन्दू-आर्य लोगोंमें बहुत प्राचीन कालसे पायी जाती है । वरन् जबतक यह सिद्ध न हो कि इनके पहले और किसी जातिको भी यह विद्या मालूम थी तबतक यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि हिन्दू-आर्य ज्योतिष-विद्याके माविष्कारक थे और बादको उन्होंने इस विद्याको उन्नतिकी चरम सीमातक पहुंचा दिया था। कल्प कल्पसे तात्पर्य सारे धर्म-सूत्रोंसे है। संस्कृत- साहित्यमें 'सूत्र' शब्द ऐसा ही प्रसिद्ध और अर्थगर्भित है जैसा कि 'श्रुति और स्मृति'। श्रुति शब्दका प्रयोग वेदोंके लिये होता है और किसी २ स्थानपर वेदों, ब्राह्मणों और उपनिपदोंके लिये भी। स्मृतिसे तात्पर्य्य धर्म-शास्त्रको पुस्तकोंसे है। बहुत सी स्मृतियोंकी रचना सूत्रोंमें की गई है। सूत्र ऐसे वाक्यको कहते हैं जिसमें यहुतसे विषयको बहुत ही थोड़े शब्दोंमें भर दिया गया हो। सूत्रकारोंने एक भी फालतू या अनावश्यक शब्दका प्रयोग नहीं किया। सारे मतलवको ठोक तौरपर प्रकट करनेके लिये ऐसी ग्रन्थिमें वांधा है कि एक शन्दको घटा-बढ़ा देनेसे अर्थों में अन्तर पड़ जाता है । आर्य लोगोंका मानसिक भाण्डार प्रायः सूत्रोंके रूपमें है । सारा धर्म-शास्त्र, अर्थात् हिन्दुओं की सारी कानूनी 'पुस्तके, उनका व्याकरण, उनका तत्त्वज्ञान, उनका तर्कशास्त्र, उनकी गणित-विद्या, उनका चैद्यक, उनका पदार्थ-विज्ञान, और उनकी ब्रह्मविद्या सबके सब सूत्रोंमें वर्णित है; और ये सूत्र ऐसो चतुराईसे बनाये गये हैं कि संसारमें उनकी कोई उपमा नहीं। यद्यपि इनका अपना आकार संक्षिप्तसे संक्षिप्त है परन्तु इनकी
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