पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/८४

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आव्यों के समयके पहले भारतकी दशा ५५ आर्यों ने इनमेंसे कुछ जातियोंकों अपनी सहायता तथा पुटिके लिये बुलाया हो। कुछ समूहोंने नये नये आक्रमणकारियोंसे परास्त होकर यहां शरण ली होगी। कुछ लोग बलात् आ गये होंगे। परन्तु यह स्पष्ट है कि भारतमें प्रवेश करनेके पश्चात् इन जातियोंमें और यहां के हिन्दु-भायों में परस्पर कोई भेद नहीं रहा । यहां- के'आय्य निवासियोंने उनको अपने धर्म तया समाजमें मिला- कर अपनी जातिमें मिला लिया, जिसके कारण वे अन्य जातियां भी हिन्दू-आय्योंके समाजका एक अङ्ग बन गई। मुसलमानोंके प्रवेशके पहले कोई ऐसो जाति भारतमें नहीं आई जो अपने संग नयी सभ्यता या कोई नया धर्म लेकर आई हो और जिसके धर्म या सामाजिक जीवनका प्रत्यक्ष प्रभाव हिन्दू-आय्योंके रहने-सहने के हंगपर पड़ा हो। ऐसी अनेक जातियोंका हिन्दू शास्त्रोंमें वर्णन पाया जाता है जिनको हिन्दुओंने यज्ञोपयोत देकर हिन्दू बना लिया अथवा द्विज बनाके उनको हिन्दू-समाजमें मिला लिया । यह भी बहुत सम्भव जान पड़ता है कि कुछ लोग भारतसे विदेश जाकर पतित मी हो गये होंगे जिन्हें फिरसे शुद्ध करके समाजमें मिला लेनेकी आवश्यक- ताका अनुभव हुआ हो। हिन्दू-आय्याँके प्रवेशके पहले भारतका इतिहास केवल कल्पनाके आधारपर स्थित है, पर दक्षिण में आर्य-सभ्यताके विलम्बसे प्रवेश होनेके कारण ऐसा प्रतीत होता है कि उसके उन्नत दशामें पहुंचने के पश्चात् भी यहुत फालतक दक्षिणमें यहांकी प्राचीन सभ्रता प्रचलित रही, जिसके आदि चिह्न रामायण आदि अनेक ग्रन्थों में पाये जाते है। दक्षिण- के कुछ नवयुयक विद्वान उस सम्यताके इतिहासको लिप.