५२ भारतवर्षका इतिहास अधिकांश क मदास प्रान्तके तिनावली जिलेमें मिली हैं। ये लोग मृतक शरीरको एक मर्तयानमें बंद करके गाड़ते थे। भारतमें मृतक शरीरफे दाहकी रीति, बहुत सम्भव है कि, आर्यों ने सबसे पहले चलाई । इसके पश्चात उस समयका प्रारम्भ होता है जिसे लोह-काल कहते हैं। कुछ लोगोंका यह विचार है कि लोह-कालके पूर्व यन्त्र, तलवारें, कुल्हाड़ियां और भाले तांबे के बनाये जाते थे। इस प्रकारफे शस्त्र मध्य प्रान्त, छोटा नागपुर, तथा कानपुर जिलेके निकट मिले हैं। जिस समयमें ऋग्वेदके मन्त्रोंको सर्व- साधारण मानने लग गये थे, उस समय में तायेके यन्त्रोंका उपयोग होता था। अथर्ववेदमें ऐसे आन्तरिक प्रमाण मिलते है जिनसे उस समय 'लोहेका उपयोग सिद्ध होता है। यूरो- पीय अन्वेषक, जो वेदोंके समयको केवल कल्पना द्वारा यहुत . संक्षेपसे वर्णन करते हैं, भारतवर्षमें लोह-माल का समय भी ठीक ठीक निकपित नहीं कर सकते। पर कुछ भी हो, इन सय प्रमाणोंसे यह परिणाम निकलता है कि मनुष्य लगभग आदि कालसे भारतके दक्षिणी भागमें विद्यमान है। प्राचीन कालमें जय उत्तरी भारतमें पानी ही पानी था तय अधिक यस्ती दक्षिणमें ही थी। परन्तु उसके बहुत समय पीछे. तक भी जब उत्तरी भारतमें समुद्रके स्थानपर पृथ्वी बन गई, दक्षिण और उत्तरमें परस्पर सम्बन्ध बहुत थोड़ा रहा । जैसा कि पहले लिख आये है, उत्तरकी चत्ती अधिकांश आर्य जातिसे है यद्यपि इसमें अन्य जातियोंका रक्त भी कुछ मिल गया है। दक्षिणी भारत में कहा जाता है कि अनार्य', जातिकी यस्ती है और यहां के लोग प्राचीन समयके आदिम मनुष्यों के उत्तराधिकारी हैं। यह कहना तो यहुत कठिन है कि
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