प्रस्तावना de ऊंचे पहाड़ हैं वहां किसी समयमें सागरकी लहरें उठा करती थीं। जहां आज गहरा समुद्र है यहां किसी समयमें ऊंचे पहाड़ थे। जहां आज निर्जन मरुस्थली है वहां कभी हरी हरी घाटि- फायें लहलहाया करती थीं। जहां गाज सुन्दर उपत्यका और याटियां हैं वहां किसी समयमें सुनसान बन थे। ये परिवर्तन प्रतिमें प्राकृतिक कारणोंसे हुए । इसी प्रकार मानवी इतिहास. में भी परिवर्तन हुए जो उसी प्रकारके नैसर्गिक कारणोंका परिणाम है। इन परिवर्तनोंका इतिहास हमारे लिये न केवल मनोरञ्जक और शिक्षाप्रद है वरन् हमारी भावी उन्नति और अस्तित्वके लिये आवश्यक और अनिवार्य है। हमारे सामने कई बार यह प्रश्न उठता है कि हमारी जाति क्यों, किन कारणों और किन अवस्थाओंमें वर्तमान दशाको प्राप्त हुई। हमारे छिद्रान्वेपी ऐसे ऐसे कारण बताते है जो हमारे लिये आशाओंके बढ़ाने और उत्साहके उच्च करनेवाले नहीं। उदाहरणार्थ ये कहते हैं कि "प्राचीन भारतीय असभ्य " या "भारतवर्ष में प्रजातन्त्र राज्यकी बुद्धि कमी उत्पन्न नहीं हुई" "भारतमें कभी देश-भक्तिका भाव न था" "भारतीय लोग सदा शासित रहे, उनमें प्रवन्धकी शक्ति नहीं" "उनकी सभ्यता. उन तत्वोंसे शून्य है जो जातियोंको पराममी मोर उच विचार. सम्पन्न यनाते हैं" इत्यादि, इत्यादि। कितने यह कहते हैं कि हमारे जल पायुका ऐसा हो प्रभाव है। कितने कहते है कि हमारे धर्मकी यह शिक्षा है। कई एकका मत है कि हमारे रचका दी यह विशेष दोष है। हमारे पास यह विश्वास करनेके लिये पर्याप्त हेतु मौजूद हैं और हम यदुतसे विचारकों और विद्वानोंके प्रमाण उपस्थित कर सकते है कि शासक जातियों के शासनका एक यह रहस्य है कि ये अपनी अधीन और शासित
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