पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/५१

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.२४ | भारतवर्पका इतिहास सैमेटिक और मङ्गोलियन । यहूदी, ईसाई और इसलाम इन तीनोंका प्रकाश सैमेटिक लोगोंके अन्दर हुआ। परन्तु अब वे भूमण्डलकी सभी जातियोंमें पाये जाते हैं। मङ्गोलियन जातियोंका धर्मा वह है जो प्राचीन चीनियों, प्राचीन जापानियों और प्राचीन तातारियोंका था । इन सब धर्मों में बहुतसे ऐतिह्य और धार्मिक उपाख्यान एक ही प्रकारके हैं और उनके सिद्धान्तों में भी बहुत कुछ समानता पाई जाती है। फिर भी उनका धार्मिक ढांचा और संगठन भिन्न भिन्न . है। ईसाई लोग यद्यपि भारतमें यूरोपीय अधिकारके पहले थे, परन्तु बहुतं थोड़े। यूरोपीय राजत्वकालमें उनकी बहुत वृद्धि हुई और दिनपर दिन हो रही है । मुसलमानी समाज संख्याकी दृष्टि- से दूसरे दर्जे पर है । साधारणतया राजनीतिक प्रयोजनोंके लिये वाह्य जगत यही जानता है कि भारतमें दो ही बड़े धर्म हैं- हिन्दू और मुसलमान । यद्यपि भारतके भिन्न २ प्रान्तोंमें ऐसे धार्मिक सम्प्रदाय मौजूद हैं जो अपने आपको हिन्दुओं और मुसलमानोंसे भिन्न समझते हैं, जैसे कि पंजाबमें सिक्ख, परन्तु हिन्दुओं, मुसलमानों, और ईसाइयोंमें असंख्य ऐसे मत हैं जो एक दूसरेसे ऐसे ही अलग अलग है जैसे कि से और.मुसलमान ईसाइयोंसे। अंगरेजी राज्यके पहलेके इतिहासमें कोई प्रमाण इस प्रकार- का मौजूद नहीं जिससे यह मालूम होता हो कि धार्मिक मत- भेदोंके कारण भारतमें उस प्रकारके रतपात और युद्ध हुए जैसे कि यूरोपमें रोमन कैथोलिक और प्रोटस्टेण्ट सम्प्रदायोंके वीच कई शताब्दियोंतक जारी रहे। कुछ यूरोपीय लोगोंने यह •मको चीनमें तोपो मतके नाम से पुकारा जाता है और जापानमैं शिन्तोमत कहा जाता है। हिन्दू मुसलमानों .