प्राचान भारत हास.वषयक पुस्तकाकी सूची ४ है। विक्रम संवत् पार्थव (Parthian) राजा अये ( Ayes) से.आरम्म होनेकी कल्पना जो इस पुस्तकमें की गई है उसकी उतनी ही मिट्टी पलोद दोनेकी आशा करनी चाहिये जितनी कि स्पूनरके "भारतीय इतिहासके पारसी युगकी हुई है। “संवत् १३६ अयस भयहस" इस एक पाठसे Ayes का संवत् होनेकी कल्पना कर ली गई है, यद्यपि इसका अर्थ"संवत् १३६ आद्यस्य आपादस्य" भी आसानीसे हो सकता है। पुस्तकका अन्तिम अध्याय कुछ समयानुकूल नहीं ; क्योंकि इस पुस्तकके लिने जाने और प्रकाशित होनेके बीचके समयमें श्रीकाशी प्रसाद जायसवालने “यक्षों” की मूर्तियोंके विषयमें जो भारी खोज की है उसके कारण भारतीय · कलाके विकासकी पुरानी कल्पनामें बहुत परिवर्तन आवश्यक हो गये हैं। पुस्तकके अन्तमें एक विस्तृत प्रन्य-सूची है पर उसमें तिलकके Arctic Home, बजेन्द्रलाल सीलकी Positive Science of the Hindus, Faac FT FTC* Hindu Achievement in Exact Science, एवं राधाकुमुद मुकर्जीकी Fundamen- tal Unity of India का उल्लेख न होना माश्चर्यकर है। विश्वेश्वर नाथ रेड-भारतवर्षके प्राचीन राजवंश (दो भागोंमें) । बहुत अच्छा संग्रह है। जगह जगह स्रोत- अन्योंसे उद्धरण देता है। ER Bevan.-The House of Selucus, रामकृष्ण गोपाल भाण्डारकर-A Peep into the Ea- rly History of India, etc, Early History of the Dekhan. (In the Bombay Gazetteer, 1896, vol. 1-peri 2. Early History of Gujrat
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