प्रस्तावना आर्यों ने अपनी भाषाको द्रविड़-स्रोतके शब्दों और मुहावरोंसे अमिश्रित रखने में भारी सफलता प्राप्त की। आधुनिक द्रविड़ भाषाओं में संस्कृतके असंख्य शन्द है, परन्तु क्या प्राचीन और क्या नूतन संस्कृतमें द्रविड़ भाषाओंके शन्दों और मुहावरोंकी सुरततक दिखाई नहीं देती। यदि वे होंगे भी तो ऐसे कम कि उनका होना और न होना समान है। उत्तरीय और पश्चिमी भारतकी सभी भाषायें अर्थात् बङ्गला, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती और मराठी संस्कृतसे निकली हैं। हां, उर्दू, अरबी, फारसी और तातारी शब्दों तथा मुहावरोंको यहुत कुछ मिलावट है। परन्तु वोल चालकी उर्दूमें भी सौ पीछे ७५ से भी अधिक शब्द निश्चय पूर्वक संस्कृतके हैं। प्रायः यह समझा जाता है कि भारतवर्षमें भारतकं धर्म असंख्य धर्म है। कई लोग यहांतक कह देते हैं कि जितने मनुष्य उतने धर्म । वास्तवमें तो यह अन्तिम कथन संसारके सभी अधिवासियोपर चरितार्थ होता है, क्योंकि धर्म एक व्यक्तिगत लक्षण है जो प्रत्येक मनुष्य के लिये अलग अलग है। धर्मका संबन्ध मनुष्यकी आत्मासे है। मनुष्योंकी आत्मायें भिन्न भिन्न हैं। इसीलिये किन्हीं दो मनुष्योंका धर्म वास्तनमें एक नहीं है। परंतु जिन साधारण अर्थों में "धर्म" शब्दका प्रयोग किया जाता है उनका ध्यान रखकर यह कहा जा सकता है कि भारतमें तीन धम्मों के अनुयायियों की संख्या सयले अधिक है-(१) हिन्दू, (२) इसलाम, (३) ईसाई । इनके अतिरिक्त सिक्स, जैन, यौद्ध और पारसी भी हैं। ये सब आर्यजातिके धर्म या मत हैं। इसलाम और ईसाई दोनोंका मूल यहदी है। भारतमें यहूदियोंकी भी कुछ संख्या है। संसारमें तीन प्रकारके धर्मा है, अर्थात् आर्य,
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