केम्ब्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड ४३६ पांववीं शताब्दी ईसा-पूर्वके भी बहुत पहलेकी बताते हैं। (पृ० ३२३)। चंदीदाद (जो अवस्ताका एक भाग है) पर पहला प्रमाण यह है कि अहुर मुजदने १६ प्रदेश उत्पन्न किये। उनमें “हात हिन्दू" भी था । सिंधु सिंध नदीका नाम है और यही विगड़कर हिन्दू हो गया । वेदोंमें भी “सप्तसिंधु" आता है। परन्तु इस यातका कोई प्रमाण नहीं कि “हनहिन्दू"से यही प्रदेश अभि- प्रेत है जो वेदोंके “सप्तसिंधु से है। वेदोंके "सप्तसिंधु में सर- खती भी सम्मिलित को जाती है, यद्यपि सय विद्वान् सहमत है कि ईरानी राज्य कभी व्यास नदीके पार नहीं हुमा। मानों उनके कथनानुसार भी सुतलजका प्रदेश “हप्तहिन्दू" में सम्मि- लित न था । एक विद्वान डार्मस्टेटर (Darmesteter) ने स्पष्ट रूपसे लिखा है कि "जन्दावस्ता" के १६ प्रदेशोंसे अभिप्राय उन प्रदेशोंसे है जहां जदुश्तका धर्म फैला हुआ था। उससे राज- नीतिक राज्यकी कल्पना करना ठीक नहीं (पृष्ठ ३२४का नोट)। धर्म प्रचारके सम्बन्ध बहुतसी घटनायें वास्तविकतासे तनिक बढ़ाकर वर्णन की जाती हैं। ऐसे ही फिरदीसो एक स्थानपर लिखता है कि असफन्दयारने भारतके एक राजासे प्रतिमा- पूजन छुड़ाकर उसको अग्नि-पूजक बनाया * यहांतक कि भारतमें प्रतिमा-पूजनका चिह भी न रहा। यह स्पष्ट है कि यह कथन सर्वथा मिथ्या है। इससे किसी प्रकारको राजनीतिक सत्ताका परिणाम निकालना निरर्थक है। इस विद्वानने पेंदीदादके लेखसे यह परिणाम निकाला है
- इस विषयक सम्वधर्म सर हेनरी इलियटके भारत इतिहासकै माग ५ मैं पट
५९० पर विना है कि जईसने भारतमें शिथ पनानेका य किया, यर्शतक कि एक विज्ञान प्राधप उसका बनुयायो धोकर उसके प्रचारकोंबो भारत में स्वाया।