प्रस्तावना २१ मेरी सम्मति में इस यातको अभी ऐति- क्या हिन्दू भारतके हासिक रूपसे स्वीकार कर लेना चाहिये मूल-निवासी हैं? कि हिन्दू आर्य भारतवर्षके मूल निवासी नहीं हैं। थार्य-जाति एक बहुत बड़ी जाति थी। यूरोपको प्रायः सभी जातियाँ और एशिया भारतीय तथा ईरानी ये सब इसी वंशसे यतलाई जाती हैं। यूरोपीय माता-पितासे उत्पन्न अमरीकन भी इसी जातिसे हैं। प्राचीन मार्यो की मूल जन्मभूमि कहाँ थी, घे लोग क्व यहांसे चले और किस किस कालमें किस किस देशमें जाकर बसे, इस विषयमें अन्वेपकोंका आपसमें बहुन मतभेद है । विद्वानोंका एक दल यह कहता है कि इस जातिका आदि देश उत्तरीय सागरके दक्षिणी भागोंमें अर्थात् स्वीडन, नार्वे, डन्मार्क और उत्तरीय रूसमें था। दूसरे दलका कथन है कि इस जातिको जन्म भूमि एशिया और यूरोपका वह भाग था जिसके उत्तरमें रूम सागर और फ़ारसकी पाड़ी है, जिसकी उत्तरीय सीमा वाल्गा नदी और एशियाई रूसका दक्षिणी भाग था; और जिसके अन्तर्गत फस्पियन समुद्रका निकटरी प्रदेश, कृष्ण सागर और काफ़- की पर्वतमाला थी। पूर्वीय एशियामें उसकी दक्षिणी सीमा हिमालयकी गिरिमाला थी। जो हो, हमारे प्रयोजनके लिये यही पर्याप्त है कि हिन्दू आर्य भारतवर्षमें उत्तर-पश्चिमी दराँसे ऐतिहासिक कालके बहुत पहले प्रविष्ट हुए। कहा जाता है कि उस समय भारतमें द्रविड़-जाति अपनी, सभ्यताके उच्चतम शिखरपर थी और आर्यलोगोंने उनको दक्षिणको ओर ढकेल दिया, जहां अबतक उस जातिके मनुष्य यसते हैं और उस सभ्यताके चिह्न मौजूद है। कई यूरोपीय पैतिहासिकौंका यह कथन कि आर्यो के आगमनके पहले भारतके मूल निवासी केंबल
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