कैस्त्रिज हिस्टरी आव इण्डियाका प्रथम खण्ड १.४३३ दस परिच्छेदमें लिखा है कि भिन्न भिन्न सूत्रोंमें मिन्न भिन्न कालों और भिन्न भिन्न प्रदेशोंके कानून लिखे हैं (पृ० २२७)। परन्तु इतना होते हुए भी स्वयं सूत्रोंको लेकर समस्त भारतके विषयमें सम्मति प्रकट की गई है और प्रायः नमूने के लिये वे सूत्र और धर्म-शास्त्र चुन लिये गये है जिनका झुकाव दृदयको संकीर्णताकी ओर है। रसोईकी स्वच्छता । उस समय शूद्रों और दासोंसे भोजन वनवानेका काम लिया जाता था। परन्तु उनको आदेश था कि अपने याल, दाढ़ी और नाखून प्रति दिन कटवायें (पृष्ठ २३१)। विवाह-संस्कारमें 'सप्त पदी' अर्थात् फेरों विवाह-संस्कार। का उल्लेख करते हुए उक्त अध्यापक महाशय लिखते हैं (पृष्ठ २३४ ) कि दुलहा दुलहिनका हाथ पकड़कर यह कहता है-"यह में हूँ, तू तू है ।तू तू है और मैं यह हूँ । मैं आकाश हूँ तू पृथ्वी है। तू ऋचा है और मैं साम हूँ, तू मेरे साथ सतीमावसे रहियो।" आप कहते है कि विशेष नियमोंमें यह उल्लेख है कि स्त्रियाँ दुलहाके मकानपर खाना खाने जाती थी, और खाने में प्राण्डी+पीती थीं, चार चार नाचती थीं। इस विचित्र रीतिके लिये शासायन गृह्यसूत्रका प्रमाण दिया गया है। राजस्व-मोचन । पृष्ठ २४२ पर यह मत प्रकट किया गया है कि जो सूत्र शेष रह गये हैं वे उनसे आधे हैं
- इस सम्बन्ध में हिन्दुओं को ससा और सावधानता ससारभरमै पहिताय ।
बाजलकी छुरोपीय सभ्यता भी इतनी प्रावधान नः । मिस गदमा पनुवाद बागडो किया गया है वह लिखा नहीं गया। भानन्दी. सवपर गाने बनानेकी प्रथा प्राचीन भारत में अवश्य घो। २८