भारतवर्षका इतिहास है । परन्तु यह नहीं बताया गया कि यह बीकानेर शब्द वही है जिससे तात्पर्य चीकानेर-राज्यकी राजधानी से है या कोई और । बीकानेरकी राजधानी तो वैदिक शब्द नहीं है। बीकानेर- को वीका राठौरने ईसाकी पन्द्रहवीं शताब्दीके लगभग बसाया और अपने नामके साथ उस स्थानके मूल स्वामी नेर या नेराका नाम जोड़कर उसको बीकानेर कहने लगा। [ देखो, टाड कृत राजस्थान, दूसरा खण्ड, पृष्ठ १४१] । सारांश यह कि सारे का सारा परिच्छेद इसी प्रकारके मिथ्या परिणामोंसे भरा हुआ है। इस अध्यापककी सम्मतिमें ऋग्वेदका काल लगभग १२०० वर्ष ईसाके पूर्व था। इस परि- ' च्छेदकै अन्तिम भागमें प्रोफेसर जेकोबीके परिणामोंका खण्डन फिया गया है। हमारी सम्मतिमें ऋग्वैदिक कालका इतिहास लिखनेकी चेष्टा सर्वथा निरर्थक है। यदि हिन्दुओंके वेद-सम्बन्धी विश्वासोंको न भी स्वीकार किया जाय तो भी अबतक संसारमें कोई विद्वान ऐसा उत्पन्न नहीं हुआ जिसने वेदोंकी भाषाको भली भांति समझा हो। यध्यापक मेक्समुलरके कथनानुसार यूरोपीय विद्वान लगभग डेढ़ सौ वर्षों से वेदोंके विषयोंको पहेलियोंके सदृश वूझनेका यत्न कर रहे हैं और अभीतक इसमें उनको सफलता नहीं हुई। भारतीय विद्वानों में भी कोई ऐसा दिखाई नहीं देता जिसको वैदिक भाषापर अधिकार हो। कुछ मन्त्र साफ़ हैं। उनके अर्थ भी किये जा सकते हैं । वैदिक कालका निरूपण करने और तत्का. लोन सभ्यताका पूर्ण चित्र उपस्थित करनेको चेष्टा व्यर्थ है । जो भी हो इन कल्पनात्मक परिणामोंको ऐतिहासिक पद देना केवल धोखा देना है और इनको भारतीय इतिहासका अङ्ग बनाना भारी भूल है। .
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