प्रस्तावना १६ - हिन्दुओंकी प्राचीन पुस्तकोंका है । हिन्दुओंकी यह प्रतिशा नहीं कि उन्होंने कभी क्रमिक इतिहास लिसनेका यत्न किया परन्तु उनकी पुस्तकों में ऐसी पर्याप्त सामग्री मौजूद है जो उनकी सभ्यता और नागरिकताके इतिहासको ईसाके कमसे कम तीन सहस्र वर्ष पूर्वतक पहुंचा देता है। यह सामग्री संसारकी . सभ्यताके इतिहासमें अद्वितीय मूल्यवान् है और सब प्रकारसे आर्य-जातियोंके इतिहासमें अनुपम है। ऐतिहासिक कालके ऐतिहासिक काल, जैसा कि मैंने ऊपर कहा, ईसाके ६०० या ७०० वर्ष पहलेसे । पहलेका साहित्य आरम्भ होता है। हिन्दुओंके पवित्र ग्रन्थ प्रामाणिक रूपसे इससे पुराने हैं । यूरोपीय अन्वेपकोंने भी इस वातको स्वीकार किया है कि उनका काल कमसे कम १५०० लेकर ३००० वर्ण ईसा पूर्वका है। कई अन्वेषक इसको ईसाके ४००० वर्ष पूर्वतक ले जाते हैं। स्वर्गीय बाल गङ्गाधर तिलकने अपने अन्वेपणसे यह सम्मति स्थिर की थी कि वेदोंकी प्राचीनता ईसाके लगभग आठ दस सहस्र वर्ष पूर्वतक पहुंचती है। धार्मिक विचार-दृष्टिसे हिन्दू चेदोंको भगवद्वाणी और ईश्वरस्त मानते है। उनके समीप वेद सनातन और नित्य है। परन्तु ऐतिहा- सिक विचार दृष्टिसे हमको इस विवादमें पड़नेकी आवश्यकता नहीं । वैदिक साहित्यके अन्तर्गत केवल वेद पवित्र ही नहीं, वरन् वे पुस्तफें भी है जिनका आधार वेदकी श्रुतियां हैं और जिनमें वेदोंके विषयोंकी व्याख्याय तत्कालीन हिन्दू आर्योंके ऐतिहासिक वृत्चान्तोंसे मिली हुई है, उदाहरणार्थ ब्राह्मण अन्य और उपनि- पद। इन पुस्तकोंके रचना-कालका ठीक ठीक निरूपण करना लगभग पेसा ही असम्भव है जैसा कि वेदोंका। परन्तु इसमें फिसी मान्य विचारकको सन्देह नहीं कि कुछ भी हो ये ऐति- 12
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